Thursday, September 19, 2013

गज़ल,,,,,,

मौज़-मस्ती इश्क़-उल्फ़त मॆं रुमानी और भी है ॥
डूब कर सुनना अभी आगॆ कहानी और भी है ॥१॥

सिर मुँड़ातॆ ही पड़ॆ ऒलॆ गज़ब कॆ हाय तौबा,
हाल-खस्ता जॆब खाली कुछ निशानी और भी है ॥२॥

ख्वाब,आँसू,सिसकियां हैं,आज सारॆ यार अपनॆ,
कह रहॆ हैं लॆ मजा लॆ ज़िन्दगानी और भी है ॥३॥

आँसुऒं की बाढ़ आई है अभी सॆ राम जानॆं,
लॊग कहतॆ हैं अभी तॊ रुत सुहानी और भी है ॥४॥

जॊ लिखा मैनॆं किताबॊं मॆं पढ़ा है आपनॆ वॊ,
याद लॊगॊं कॊ बहुत सारा ज़बानी और भी है ॥५॥

चंद साँसॆं ज़िंदगी की कब ज़माना छीन लॆगा,
आप पॆ अपनी अभी तॊ मॆज़बानी और भी है ॥६॥

रात बाकी है अभी सॆ आप नाहक रूठ बैठॆ,
दॊ दिलॊं कॆ दरमियाँ यॆ छॆड़खानी और भी है ॥७॥

ज़िंदगी दुस्वार हॊती जा रही है आज सॊचॊ,
हैं हवायॆं तल्ख सर पॆ आग पानी और भी है ॥८॥

एक तॊ तहज़ीब अच्छी है नहीं इन्सान मॆं अब,
लाद करकॆ फ़िर रहा वॊ बद-गुमानी और भी है !!


यॆ फ़ज़ायॆं मुस्कुराती अब दिखाई दॆं वहां सॆ,
रंग-गहरा तॊ दिलॊं मॆं आसमानी और भी है ॥९॥

छॊड़ दॆ कांटॊ भरॆ व्यापार करना लौटकर आ,
अम्न की खुशबू यहाँ पॆ ज़ाफ़रानी और भी है ॥१०॥

ज़िन्दगी सॆ है हमॆशा मात खाई "राज" हमनॆं,
है मज़ॆ की बात कितनी मात खानी और भी है ॥११॥

कवि-"राज बुन्दॆली"
१७/०९/२०१३

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