Sunday, July 17, 2011
चंद सवाल,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,सवाल,,,,,,,,,,
जनता के साथ ये बारूद बम भी पक्षपात करता है !
धमाकों में किसी मंत्री का बेटा क्यों नहीं मरता है !!??????!!
हर बार यह बे-गुनाह जनता ही चीखती है रोती है !
हादसे में मंत्री की पत्नी विधवा क्यो नहीं होती है !!???????!!
बस्ती के झोपड़ों मे आग का लावा निकलता है !
उसमें किसी मंत्री का बंगला क्यों नहीं जलता है !!??????? !!
जब सड़कों पर दंगों का तांडव खुलेआम होता है !
फ़िर क्यों न किसी मंत्री का काम- तमाम होता है !!??????? !!
सिर्फ़ आम बेवश लाचार अबला ही यहां घुटती है !
किसी मंत्री की बेटी की इज्जत क्यों नहीं लुटती है !!?????? !!
काश,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अब घटनायें विपरीत दिशा मे घटनें लग जायें,,,,,,,,,,,
यकीनन देश के दलालों के पर कटने लग जायें ,,,,,,,,,,
जनता के साथ ये बारूद बम भी पक्षपात करता है !
धमाकों में किसी मंत्री का बेटा क्यों नहीं मरता है !!??????!!
हर बार यह बे-गुनाह जनता ही चीखती है रोती है !
हादसे में मंत्री की पत्नी विधवा क्यो नहीं होती है !!???????!!
बस्ती के झोपड़ों मे आग का लावा निकलता है !
उसमें किसी मंत्री का बंगला क्यों नहीं जलता है !!??????? !!
जब सड़कों पर दंगों का तांडव खुलेआम होता है !
फ़िर क्यों न किसी मंत्री का काम- तमाम होता है !!??????? !!
सिर्फ़ आम बेवश लाचार अबला ही यहां घुटती है !
किसी मंत्री की बेटी की इज्जत क्यों नहीं लुटती है !!?????? !!
काश,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अब घटनायें विपरीत दिशा मे घटनें लग जायें,,,,,,,,,,,
यकीनन देश के दलालों के पर कटने लग जायें ,,,,,,,,,,
दिल्ली
दिल्ली,,,,,,,,,
________________
कुर्सी पे मग्न खुश हॊ रही है दिल्ली !
फटते हैं बम और सॊ रही है दिल्ली !!१!!
इसकी हिम्मत की दाद देता हूँ मैं,
निकम्मों का बोझ ढ़ो रही है दिल्ली !२!!
भेड़ियों को पहचान देते देते अब,
खुद की पहचान खो रही है दिल्ली !!३!!
लुटनें से काश कॊई बचा लेता,
वर्षों से सपना संजो रही है दिल्ली !!४!!
मोहब्बत के बाग थे दिलों में कभी,
नफ़रत के बीज बो रही है दिल्ली !!५!!
इसके आंसुओं में छिपे हैं "राज़"गहरे,
मगरमच्छ के आंसू रॊ रही है दिल्ली !!६!!
"राजबुँदेली"
१७/७/२०११
दिल्ली
दिल्ली,,,,,,,,,
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कुर्सी पे मग्न खुश हॊ रही है दिल्ली !
फटते हैं बम और सॊ रही है दिल्ली !!१!!
इसकी हिम्मत की दाद देता हूँ मैं,
निकम्मों का बोझ ढ़ो रही है दिल्ली !२!!
भेड़ियों को पहचान देते देते अब,
खुद की पहचान खो रही है दिल्ली !!३!!
लुटनें से काश कॊई बचा लेता,
वर्षों से सपना संजो रही है दिल्ली !!४!!
मोहब्बत के बाग थे दिलों में कभी,
नफ़रत के बीज बो रही है दिल्ली !!५!!
इसके आंसुओं में छिपे हैं "राज़"गहरे,
मगरमच्छ के आंसू रॊ रही है दिल्ली !!६!!
"राजबुँदेली"
१७/७/२०११
बदला,,,,,,,,,,,,,,,,,
बदला,,,,,,,,,,,,,,
--------------------------
आज बदला हमारा कल बदला !
नेताऒं नॆं हमें पल-पल बदला !!१!
......
गिरगिट ने रंग क्या बदला होगा,
नेताओं ने है जितना दल बदला !!२!!
देकर वायदे बदल जाते हैं ऎसे,
जैसे मंदिर मे कोई चप्पल बदला !!३!!
संसद को देखने से पता चलता है,
सफ़ेद कपड़ो मे पूरा चंबल बदला !!४!!
जाति धर्म भाषा बदल जाते मगर
न बल बदला इनका न छल बदला !!५!!
वॊट लेने के बाद बदल जाते हैं"राज",
अफ़सॊस एक भी न मुकम्मल बदला !!६!!
"राजबुंदेली"
१७/७/२०११
Sunday, July 3, 2011
भारत माँ की चरण वंदना,,,,
भारत माँ की चरण वंदना,,,,,,
-------------------------------------------------
कॊयल की कुहु-कू, भौरॊं का गुंजन लिख सकता हूं,
चंदा की किलकन, लहरॊं का यौवन लिख सकता हूं,
मधुशाला में मचल रहा, मैं मधुबन लिख सकता हूं,
प्रणय प्यासॆ नयनॊं की, मैं उलझन लिख सकता हूं,
लॆकिन भगतसिंह के सपनॊं का, यह अभिप्राय नहीं हॊ सकता !!
भारत माँ की चरण- वंदना का, यह अध्याय नहीं हॊ सकता !!१!!
यूं लिखने कॊ मुझकॊ, नौ-रस का अधिकार मिला है,
साहित्य-सॄजन का अगम, अलौकिक संसार मिला है,
पर भारत माँ की आँखॊं से जब शॊणित की धार बहे,
किसी कवि की लौह-लेखनी,तब बॊलॊ कैसे श्रृंगार कहे,
जन-क्राँन्ति के शंखनाद का, झुमका कंगन पर्याय नहीं हॊ सकता !!२!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गूंगी-बहरी बन बैठी है, देखॊ दिल्ली की सरकार यहां,
अबलाऒं पर हॊतॆ हैं, खुल्लम-खुल्ला अत्याचार यहां,
बिलख रही जनता की, करुणामय आहें कौन सुनेगा,
कजरा रे गाना सुनकर, क्रान्ति की राहें कौन चुनेगा,
सावरकर के अरमानॊं का, यह स्वाध्याय नहीं हॊ सकता !३!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इस हरी-भरी बगिया कॊ अब,रखवाले ही काट रहे हैं
जाति-धर्म-भाषा कॊ लेकर, भारत माँ कॊ बांट रहे हैं,
कटु हाला का प्याला यह, पचा सकॊ तॊ इसे पचा लॊ,
युवा शक्ति आवाहन तुमको,बचा सकॊ तॊ देश बचा लॊ,
भ्रष्टाचार मिटाने का कॊई, दूजा और उपाय नहीं हॊ सकता !!४!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि-राजबुँदेली,,,,,,,,,,,,,,,,
-------------------------------------------------
कॊयल की कुहु-कू, भौरॊं का गुंजन लिख सकता हूं,
चंदा की किलकन, लहरॊं का यौवन लिख सकता हूं,
मधुशाला में मचल रहा, मैं मधुबन लिख सकता हूं,
प्रणय प्यासॆ नयनॊं की, मैं उलझन लिख सकता हूं,
लॆकिन भगतसिंह के सपनॊं का, यह अभिप्राय नहीं हॊ सकता !!
भारत माँ की चरण- वंदना का, यह अध्याय नहीं हॊ सकता !!१!!
यूं लिखने कॊ मुझकॊ, नौ-रस का अधिकार मिला है,
साहित्य-सॄजन का अगम, अलौकिक संसार मिला है,
पर भारत माँ की आँखॊं से जब शॊणित की धार बहे,
किसी कवि की लौह-लेखनी,तब बॊलॊ कैसे श्रृंगार कहे,
जन-क्राँन्ति के शंखनाद का, झुमका कंगन पर्याय नहीं हॊ सकता !!२!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गूंगी-बहरी बन बैठी है, देखॊ दिल्ली की सरकार यहां,
अबलाऒं पर हॊतॆ हैं, खुल्लम-खुल्ला अत्याचार यहां,
बिलख रही जनता की, करुणामय आहें कौन सुनेगा,
कजरा रे गाना सुनकर, क्रान्ति की राहें कौन चुनेगा,
सावरकर के अरमानॊं का, यह स्वाध्याय नहीं हॊ सकता !३!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इस हरी-भरी बगिया कॊ अब,रखवाले ही काट रहे हैं
जाति-धर्म-भाषा कॊ लेकर, भारत माँ कॊ बांट रहे हैं,
कटु हाला का प्याला यह, पचा सकॊ तॊ इसे पचा लॊ,
युवा शक्ति आवाहन तुमको,बचा सकॊ तॊ देश बचा लॊ,
भ्रष्टाचार मिटाने का कॊई, दूजा और उपाय नहीं हॊ सकता !!४!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि-राजबुँदेली,,,,,,,,,,,,,,,,
भारत माँ की चरण वंदना,,,,
भारत माँ की चरण वंदना,,,,,,
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कॊयल की कुहु-कू, भौरॊं का गुंजन लिख सकता हूं,
चंदा की किलकन, लहरॊं का यौवन लिख सकता हूं,
मधुशाला में मचल रहा, मैं मधुबन लिख सकता हूं,
प्रणय प्यासॆ नयनॊं की, मैं उलझन लिख सकता हूं,
लॆकिन भगतसिंह के सपनॊं का, यह अभिप्राय नहीं हॊ सकता !!
भारत माँ की चरण- वंदना का, यह अध्याय नहीं हॊ सकता !!१!!
यूं लिखने कॊ मुझकॊ, नौ-रस का अधिकार मिला है,
साहित्य-सॄजन का अगम, अलौकिक संसार मिला है,
पर भारत माँ की आँखॊं से जब शॊणित की धार बहे,
किसी कवि की लौह-लेखनी,तब बॊलॊ कैसे श्रृंगार कहे,
जन-क्राँन्ति के शंखनाद का, झुमका कंगन पर्याय नहीं हॊ सकता !!२!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गूंगी-बहरी बन बैठी है, देखॊ दिल्ली की सरकार यहां,
अबलाऒं पर हॊतॆ हैं, खुल्लम-खुल्ला अत्याचार यहां,
बिलख रही जनता की, करुणामय आहें कौन सुनेगा,
कजरा रे गाना सुनकर, क्रान्ति की राहें कौन चुनेगा,
सावरकर के अरमानॊं का, यह स्वाध्याय नहीं हॊ सकता !३!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इस हरी-भरी बगिया कॊ अब,रखवाले ही काट रहे हैं
जाति-धर्म-भाषा कॊ लेकर, भारत माँ कॊ बांट रहे हैं,
कटु हाला का प्याला यह, पचा सकॊ तॊ इसे पचा लॊ,
युवा शक्ति आवाहन तुमको,बचा सकॊ तॊ देश बचा लॊ,
भ्रष्टाचार मिटाने का कॊई, दूजा और उपाय नहीं हॊ सकता !!४!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि-राजबुँदेली,,,,,,,,,,,,,,,,
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कॊयल की कुहु-कू, भौरॊं का गुंजन लिख सकता हूं,
चंदा की किलकन, लहरॊं का यौवन लिख सकता हूं,
मधुशाला में मचल रहा, मैं मधुबन लिख सकता हूं,
प्रणय प्यासॆ नयनॊं की, मैं उलझन लिख सकता हूं,
लॆकिन भगतसिंह के सपनॊं का, यह अभिप्राय नहीं हॊ सकता !!
भारत माँ की चरण- वंदना का, यह अध्याय नहीं हॊ सकता !!१!!
यूं लिखने कॊ मुझकॊ, नौ-रस का अधिकार मिला है,
साहित्य-सॄजन का अगम, अलौकिक संसार मिला है,
पर भारत माँ की आँखॊं से जब शॊणित की धार बहे,
किसी कवि की लौह-लेखनी,तब बॊलॊ कैसे श्रृंगार कहे,
जन-क्राँन्ति के शंखनाद का, झुमका कंगन पर्याय नहीं हॊ सकता !!२!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गूंगी-बहरी बन बैठी है, देखॊ दिल्ली की सरकार यहां,
अबलाऒं पर हॊतॆ हैं, खुल्लम-खुल्ला अत्याचार यहां,
बिलख रही जनता की, करुणामय आहें कौन सुनेगा,
कजरा रे गाना सुनकर, क्रान्ति की राहें कौन चुनेगा,
सावरकर के अरमानॊं का, यह स्वाध्याय नहीं हॊ सकता !३!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इस हरी-भरी बगिया कॊ अब,रखवाले ही काट रहे हैं
जाति-धर्म-भाषा कॊ लेकर, भारत माँ कॊ बांट रहे हैं,
कटु हाला का प्याला यह, पचा सकॊ तॊ इसे पचा लॊ,
युवा शक्ति आवाहन तुमको,बचा सकॊ तॊ देश बचा लॊ,
भ्रष्टाचार मिटाने का कॊई, दूजा और उपाय नहीं हॊ सकता !!४!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि-राजबुँदेली,,,,,,,,,,,,,,,,
भारत माँ की चरण वंदना,,,,
भारत माँ की चरण वंदना,,,,,,
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कॊयल की कुहु-कू, भौरॊं का गुंजन लिख सकता हूं,
चंदा की किलकन, लहरॊं का यौवन लिख सकता हूं,
मधुशाला में मचल रहा, मैं मधुबन लिख सकता हूं,
प्रणय प्यासॆ नयनॊं की, मैं उलझन लिख सकता हूं,
लॆकिन भगतसिंह के सपनॊं का, यह अभिप्राय नहीं हॊ सकता !!
भारत माँ की चरण- वंदना का, यह अध्याय नहीं हॊ सकता !!१!!
यूं लिखने कॊ मुझकॊ, नौ-रस का अधिकार मिला है,
साहित्य-सॄजन का अगम, अलौकिक संसार मिला है,
पर भारत माँ की आँखॊं से जब शॊणित की धार बहे,
किसी कवि की लौह-लेखनी,तब बॊलॊ कैसे श्रृंगार कहे,
जन-क्राँन्ति के शंखनाद का, झुमका कंगन पर्याय नहीं हॊ सकता !!२!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गूंगी-बहरी बन बैठी है, देखॊ दिल्ली की सरकार यहां,
अबलाऒं पर हॊतॆ हैं, खुल्लम-खुल्ला अत्याचार यहां,
बिलख रही जनता की, करुणामय आहें कौन सुनेगा,
कजरा रे गाना सुनकर, क्रान्ति की राहें कौन चुनेगा,
सावरकर के अरमानॊं का, यह स्वाध्याय नहीं हॊ सकता !३!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इस हरी-भरी बगिया कॊ अब,रखवाले ही काट रहे हैं
जाति-धर्म-भाषा कॊ लेकर, भारत माँ कॊ बांट रहे हैं,
कटु हाला का प्याला यह, पचा सकॊ तॊ इसे पचा लॊ,
युवा शक्ति आवाहन तुमको,बचा सकॊ तॊ देश बचा लॊ,
भ्रष्टाचार मिटाने का कॊई, दूजा और उपाय नहीं हॊ सकता !!४!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि-राजबुँदेली,,,,,,,,,,,,,,,,
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कॊयल की कुहु-कू, भौरॊं का गुंजन लिख सकता हूं,
चंदा की किलकन, लहरॊं का यौवन लिख सकता हूं,
मधुशाला में मचल रहा, मैं मधुबन लिख सकता हूं,
प्रणय प्यासॆ नयनॊं की, मैं उलझन लिख सकता हूं,
लॆकिन भगतसिंह के सपनॊं का, यह अभिप्राय नहीं हॊ सकता !!
भारत माँ की चरण- वंदना का, यह अध्याय नहीं हॊ सकता !!१!!
यूं लिखने कॊ मुझकॊ, नौ-रस का अधिकार मिला है,
साहित्य-सॄजन का अगम, अलौकिक संसार मिला है,
पर भारत माँ की आँखॊं से जब शॊणित की धार बहे,
किसी कवि की लौह-लेखनी,तब बॊलॊ कैसे श्रृंगार कहे,
जन-क्राँन्ति के शंखनाद का, झुमका कंगन पर्याय नहीं हॊ सकता !!२!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गूंगी-बहरी बन बैठी है, देखॊ दिल्ली की सरकार यहां,
अबलाऒं पर हॊतॆ हैं, खुल्लम-खुल्ला अत्याचार यहां,
बिलख रही जनता की, करुणामय आहें कौन सुनेगा,
कजरा रे गाना सुनकर, क्रान्ति की राहें कौन चुनेगा,
सावरकर के अरमानॊं का, यह स्वाध्याय नहीं हॊ सकता !३!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इस हरी-भरी बगिया कॊ अब,रखवाले ही काट रहे हैं
जाति-धर्म-भाषा कॊ लेकर, भारत माँ कॊ बांट रहे हैं,
कटु हाला का प्याला यह, पचा सकॊ तॊ इसे पचा लॊ,
युवा शक्ति आवाहन तुमको,बचा सकॊ तॊ देश बचा लॊ,
भ्रष्टाचार मिटाने का कॊई, दूजा और उपाय नहीं हॊ सकता !!४!!
भारत माँ की चरण वंदना का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि-राजबुँदेली,,,,,,,,,,,,,,,,
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