Wednesday, March 9, 2011

कवि सम्मेलन,मुसशायरा सम्पन्न,,,

आग नफरत की बुझावो तो कोई बात बने...
वकिलाच्या कार्यालयात रंगली मराठी, हिंदी, उर्दू काव्यमैफल
कल्याण, दि. ९ (प्रतिनिधी) - वकिलाचे कार्यालय म्हटले म्हणजे अशील, आरोपी, साक्षीदार यांचा सतत वावर असतो. खटला कसा चालवायचा, पुरावे कसे सादर करायचे याचीच ‘कोर्ट छाप’ चर्चा सुरू असते. पण कल्याणमधील एक प्रसिद्ध वकील मसूद पेशइमाम यांच्या कार्यालयात चक्क मराठी, हिंदी, उर्दू कविसंमेलन आयोजित केले होते. ठाणे जिल्ह्यातील अनेक नामवंत व नवोदित शायरांनी त्यात सहभाग घेतला. वा... क्या बात है... मुर्कर्ररऽऽ... अशा उत्स्फूर्त शब्दांनी हे कार्यालय काव्यमय झाले.
मसूद पेशइमाम हे व्यवसायाने वकील असूनही त्यांना उर्दू व इंग्रजी कवितांची प्रचंड आवड आहे. त्यांनी स्वत: यावेळी काही उर्दू कवितांचा इंग्रजी अनुवाद सादर केला. अख्तर जमाल, बारी अलाहाबादी, वसीम अलमास, तन्वीर रायबेरी, गनी अश्रफ या शायरांनी सामाजिक, राजकीय तसेच देशभक्तिपर भावनांच्या अंतर्मुख करणार्‍या गझला पेश करून रसिकांची मने जिंकली.
कविसंमेलनाचे अध्यक्ष -डॉ.आर.एल.राव "राज बुंदेली" यांच्या कवितांनी वन्समोअर मिळवला. आपल्या जोशपूर्ण शैलीत ते म्हणाले,
आग नफरत की बुझाओ,तो कोई बात बने !
दिलों को दिल से मिलाओ,तो कोई बात बने !!

रोशनी या स्वत: डॉक्टर व वकील। त्यांनीही या मैफलीत ‘वो मेरी तिश्‍नगी का मर्तबा घटने नही देता’ असे म्हणत सर्वांची वाहव्वा मिळवली। प्रसिद्ध उर्दू शायर अफसर दकनी यांनी प्रेमाचे ढोंग रचणार्‍या प्रेयसीवर आपल्या गझलेतून कडक शब्दांत ताशेरे ओढले. ते म्हणाले,
तुमने सचमुच प्यार किया है
या फिर प्यार का ढोंग रचा
हमने तो सपने भी खोए
अब क्या खोना बाकी है...
बाळासाहेब तिरणकर, संदीप राऊत यांनीही आपल्या कवितांनी उपस्थितांना मंत्रमुग्ध केले. परिवहन समितीवर नियुक्ती झाल्याबद्दल इरफान शेख, साद खोत, आरीफ पठाण यांचा यावेळी सत्कार करण्यात आला. माजी नगरसेवक इफ्तकार आयुब खान, सामाजिक कार्यकर्ते आजम दकनी यांच्यासह अनेक काव्यप्रेमी या मैफलीस उपस्थित होते.







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अंतिम पत्र भगतसिंह द्वारा

सेंट्रल जेल , लाहौर ३ मार्च १९३१



...अजीज कुलतार ,

आज तुम्हारी आँखों में आसूं देख कर बहुत दुःख हुआ आज तुम्हारी बातों में बहुत दर्द था तुम्हारे आसूं मुझसे सेहन नहीं होते

बरखुदार ,हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का ख्याल रखना | हौसला रखना और क्या कहूँ !

उसे यह फ़िक्र है हर्दुम नए तर्ज़े -जफा क्या है

हमे यह शौक हैं देखें सितम की इन्तहा क्या है
...

दहर से क्यों खफा रहें चर्ख का क्यों गिला करें

सारा जहन अदू सही ,आओ मुकाबला करें

कोई दम का मेहमान हूँ ,ऐ अहेले महफ़िल

चरागे -सहर हूँ बुझा चाहता हूँ

हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली

ये मुश्ते ख़ाक है फानी रहे न रहे

अच्छा रुखसत | खुश रहो अहले -वतन हम तो सफ़र करते हैं | हिम्मत से रहना |
नमस्ते |


तुम्हारा भाई भगतसिंह

Sunday, March 6, 2011

बारहमासी,,,,,,,,,,,,

बारहमासी,,,,,,,,,,,,
_________________________
अमुआ जामुन महुआ बौराने, बौराने साधू संत !
सखी री,आवन लग्यॊ बसंत, सखी री आवन,,,,,,

चैत मास मॊहि चैन न आवॆ,
बैसाखी मॊरॆ मन नहि भावॆ,
यॆ जॆठ दुपहरी जिया जरावॆ,
हैं परदॆश बसॆ मॊरॆ कंत,सखी री आवन लग्यॊ बसंत !!
सखी री आवन लग्यॊ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

जियरा मॊरॆ चढ़ी आसाढ़ी,
सावन मन बॆचैनी बाढ़ी,
निशदिन द्वारॆ ठाढ़ी ठाढ़ी,
शाकुन्तल दॆख रही दुश्यंत, सखी री आवन लग्यॊ बसंत !!
सखी री आवन लग्यॊ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

भादॊं रैन घटा अंधियारी,
क्वांर कलॆजॆ चलॆ कटारी,
अगहन यौवन की फुलवारी,
अब मन भय़ॊ निराला पंत, सखी री आवन लग्यॊ बसंत !!
सखी री आवन लग्यॊ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

पौष मास जाड़ॆ की रात,
माघ सजन की मीठी बात,
फागुन सूखॊ बीतॊ जात ,
है कहां बिरह कॊ अंत , सखी री आवन लग्यॊ बसंत !!
सखी री,आवन लग्यॊ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

कवि-राजबुँदॆली

हॊली कॆ रंग,,राधा कॆ संग,,,,

हॊली कॆ रंग,,राधा कॆ संग,,,,
-------------------------------------------
राधा और कृष्ण मे अनबन हो गई है,और राधा जी कुछ षड़यंत्र रच रहीं है,,,
और बस यहीं से प्रसंग शुरू हॊता है,
कृष्ण कह रहे हैं,,,,,
आज हॊरी में, गुलाल भरे झॊरी में, तुम द्वार-द्वार, सखियां बुलाय रही हॊ !
मचले मन मॊर, उठे हिय में हिलोर, अंखियां चकॊरी काहे चुराय रही हॊ !!
कान में बॊल बॊल,मूक-मंत्र घॊल,पंकज कपोल नाग-भरनी भराय रही हॊ !
राधे ढ़िग जाय कहें कान्हा मुस्काय, करतार पै कछु करनी कराय रही हॊ !!१!

मन मे है चॊर,काहे तनी नाक तोर,"राज" कछु आज तू छुपाय रही है !
कमर दॊ घेर, कसे चुनरी गुरेर, नैन नचाइ रही हॊंठ क्यूं चबाय रही है !!
पिचकारी में रंग भरे मन में उमंग, नागफ़नी सी दबंग मुस्काय रही है !
चित्त चढ़ी भंग, नाचे अंग में अनंग, चाल ज्यॊं मतंग कहां जाय रही है !!२!!

अब राधा कह रहीं हैं,,,,,,,,,
चाल तेरी जान गई,तोहे पहचान गई, झूठे बहाना बनाना कान्हा छॊड़ दॆ !
तू है नंदलाला, मैं भी बृज की बाला, बाला-बाला बहलाना कान्हा छॊड़ दॆ !!
हॊरी है जाय ठिठॊली कहीं और कर,जॊरा-जॊरी आजमाना कान्हा छॊड़ दॆ !
छलिया नंदलाल करे काहे रे बबाल,मेरी गली आना जाना कान्हा छॊड़ दॆ !!३!!

अब कृष्ण की ऒर सॆ प्रतिक्रिया हुई,,,,,,,,
कृष्ण कन्हाई धाय पकरी कलाई, घबराई तब हाल बेहाल भये राधा के !
तन इंनकार करे मन इकरार, भूल तकरार के सब ख्याल गये राधा के !!
अँखियां सिकॊर चितचॊर कहे, जॊर-जॊर मलूंगा गुलाल गाल पै राधा के !
हाँथ, हाँथ छुओ गात ने गात जब, बिना गुलाल गाल लाल भये राधा कॆ !!४!!

राधा ने एक शर्त रख दी कृष्ण के सामने,,,,,
रंग डार रंग डार रॊम रॊंम रंग डार, तू जीतॊ कान्हा मैं हारी मान जाऊंगी !
जाना अनजाना भूलके बहाना तेरा, रूप का खजाना सरकारी मान जाऊंगी !!
प्रेम के पुजारी प्रेम की सौगंध है, तू निबाहे तॊ प्रेम- पुजारी मान जाऊंगी !
श्याम रंग छॊड़ दूजे रंग रंग मॊय, रंग-रसिया तेरी रंग-दारी मान जाऊंगी !!५!!

भर पिचकारी श्याम सराररा मारी, अंग-अंग राधे के सरबॊर भये रे !
सिसयानी,खिसयानी,सरमानी राधा, फ़ागुन में मचल मन मोर भये रे !!
कैसा रंग मोरे अंग डारयो छलिया,अंग-अंग शिथिल पोर-पोर भये रे !
मूरत सी ठाढ़ी राधा देखे श्याम कॊ, जैसे नैन राधा के चकोर भये रे !!६!!

बूंद-बूंद धरन पे गिरन लगे ज्यों, मोती गिरें टूट-टूट मणिमाला से !
उभय शिखर मध्य रंगधार यूं बहे, गंग-धार बहती ज्यों हिमाला से !!
गीले बसन में लिपटे नशीले अंग, गीलॊ बदन जरो जात ज्वाला से !
लाज की गाज गिरी राधा पे आज,झट झपट लिपट गई नंदलाला से !!७!!

श्याम वक्ष ज्यों बरगद वृक्ष भयो, राधिका लता बेल सी लिपटाय रही है !
राधिका के बाहुपास फ़से श्याम यूं, ज्यों बाघिन बछड़ा - खिलाय रही है !!
हांफ़ रही कांप रही न कछु भांप रही, उरग श्वांस धम्मन चलाय रही है !
अनुलोम-विलोम भयॊ श्वासो-श्वांस में, एक स्वर पी दूजॊ पिलाय रही है !!८!!

दॆवलॊक मॆं हॊली,,,,,

दॆवलॊक मॆं हॊली,,,,,
-----------------------------------------
इस वर्ष आया जब हॊली का त्यॊहार,
मची समूचे देवलोक में जय-जयकार,
इंद्र ने एक आकस्मिक सभा बुलाई,
सब देवताऒं कॊ अपनी बात सुनाई,

बोले हम देवता होकर नीरस जीवन जी रहे हैं,
मृत्युलोक में लोग मजे से सोम-रस पी रहे हैं,
देव पुत्रों को मानवीय संस्कार सिखाना है,
अब हमें भी अपना जीवन रंगीन बनाना है,

आपसी गिले-शिकवे सबकॊ भूल जाना चाहिये,
इस वर्ष देव लॊक में भी हॊली मनाना चाहिये,
सबकी बातॊं का समर्थन के रूप में विलय हुआ,
शंकर भगवान के घर में हॊली मनाना तय हुआ,

जंगल से बेशुमार चंदन की लकड़ी मगाई गईं,
और भॊलेनाथ के दरवाजे पर हॊली जलाई गई,
होलिका जली और रात भर मची रही हुड़दंग,
सबने मिल कर छानी कई -कई मर्तबा भंग,

सुबह तॊ हरेक की जुबान लड़खड़ा रही थी,
स्काय-लैब की तरह बे-ब्रेक फ़ड़फ़ड़ा रही थी,
समूचे देव लोक का बदला हुआ था रवैया,
ब्रम्हा,और नारद गा रहे थे फ़ाग बिलबैया,

भॊलेनाथ तो डम डम डिगा डिगा बजा रहे थे,
उनके गण शराबी फ़िल्म का गाना गा रहे थे,
गनॆश कार्तिकेय दोनों मिल भांग घॊंट रहे थे,
नंदी महाराज तो लगातार राख मॆं लॊट रहे थे,

कमलापति महिला मंडली के साथ ब्यस्त थे,
सूरज के सातॊ घॊड़े नसे मे एकदम लस्त थे,
मर्यादा पुरुषॊत्तम भावनाऒं में बह रहे थे,
वह लखन का हाँथ पकड़ कर कह रहे थे,

वनवासी था तो किसी का सीना नहीं तन पाया,
गृहस्थ हुआ तो एक मंदिर तक नहीं बन पाया,
मैं लॊगॊ कॊ मर्यादा और आदर्श बांट रहा हूँ,
मंदिर हेतु अदालत के चक्कर काट रहा हूँ,

इतना सुनते ही हनूमान कॊ जोश आया,
जैसे जामवंत के बचन सुन हॊश आया,
फ़िर आंखें सुर्ख हुई थीं पूंछ फ़ड़फ़ड़ाई थी,
बोले त्रेतायुग में होली तॊ हमने जलाई थी,

जला डाली थी रावण के पापों की लंका,
बजा दिया था जय श्रीराम नाम का डंका,
भगवन मैं अगली हॊली अपनी स्टाइल मॆं मनाऊंगा !
इस बार लंका में नहीं पाकिस्तान में आग लगाऊंगा !!

जय श्रीराम,,,,,,जय-जय श्रीराम,,,,,,,,,,,,,,


कवि-राजबुँदेली,,,
५ मार्च २०११,,,

दॆवलॊक मॆं हॊली,,,,,

दॆवलॊक मॆं हॊली,,,,,
-----------------------------------------
इस वर्ष आया जब हॊली का त्यॊहार,
मची समूचे देवलोक में जय-जयकार,
इंद्र ने एक आकस्मिक सभा बुलाई,
सब देवताऒं कॊ अपनी बात सुनाई,

बोले हम देवता होकर नीरस जीवन जी रहे हैं,
मृत्युलोक में लोग मजे से सोम-रस पी रहे हैं,
देव पुत्रों को मानवीय संस्कार सिखाना है,
अब हमें भी अपना जीवन रंगीन बनाना है,

आपसी गिले-शिकवे सबकॊ भूल जाना चाहिये,
इस वर्ष देव लॊक में भी हॊली मनाना चाहिये,
सबकी बातॊं का समर्थन के रूप में विलय हुआ,
शंकर भगवान के घर में हॊली मनाना तय हुआ,

जंगल से बेशुमार चंदन की लकड़ी मगाई गईं,
और भॊलेनाथ के दरवाजे पर हॊली जलाई गई,
होलिका जली और रात भर मची रही हुड़दंग,
सबने मिल कर छानी कई -कई मर्तबा भंग,

सुबह तॊ हरेक की जुबान लड़खड़ा रही थी,
स्काय-लैब की तरह बे-ब्रेक फ़ड़फ़ड़ा रही थी,
समूचे देव लोक का बदला हुआ था रवैया,
ब्रम्हा,और नारद गा रहे थे फ़ाग बिलबैया,

भॊलेनाथ तो डम डम डिगा डिगा बजा रहे थे,
उनके गण शराबी फ़िल्म का गाना गा रहे थे,
गनॆश कार्तिकेय दोनों मिल भांग घॊंट रहे थे,
नंदी महाराज तो लगातार राख मॆं लॊट रहे थे,

कमलापति महिला मंडली के साथ ब्यस्त थे,
सूरज के सातॊ घॊड़े नसे मे एकदम लस्त थे,
मर्यादा पुरुषॊत्तम भावनाऒं में बह रहे थे,
वह लखन का हाँथ पकड़ कर कह रहे थे,

वनवासी था तो किसी का सीना नहीं तन पाया,
गृहस्थ हुआ तो एक मंदिर तक नहीं बन पाया,
मैं लॊगॊ कॊ मर्यादा और आदर्श बांट रहा हूँ,
मंदिर हेतु अदालत के चक्कर काट रहा हूँ,

इतना सुनते ही हनूमान कॊ जोश आया,
जैसे जामवंत के बचन सुन हॊश आया,
फ़िर आंखें सुर्ख हुई थीं पूंछ फ़ड़फ़ड़ाई थी,
बोले त्रेतायुग में होली तॊ हमने जलाई थी,

जला डाली थी रावण के पापों की लंका,
बजा दिया था जय श्रीराम नाम का डंका,
भगवन मैं अगली हॊली अपनी स्टाइल मॆं मनाऊंगा !
इस बार लंका में नहीं पाकिस्तान में आग लगाऊंगा !!

जय श्रीराम,,,,,,जय-जय श्रीराम,,,,,,,,,,,,,,


कवि-राजबुँदेली,,,
५ मार्च २०११,,,


होली में ,,,,,,,,,,,,,,

आ जाना श्याम,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

आ जाना श्याम नगरिया में,,,,,,नगरिया में,,,

हॊली खेलेंगे बजरिया में !! आ जाना,,,,,,,,,,,,,,

नीले लाल हरे पीले रंग लेके,

ग्वाल-बाल सबहीं संग लेके,

करना न देर डगरिया मॆं !!१!! आ जाना श्याम नगरिया में,,,,,,,,

केशर गुलाल अबीर मैं डारूं,

भर-भर पिचकारी भी मारूं,

भर आई हूँ रंग गगरिया में !२!!आ जाना श्याम नगरिया में,,,,,,,,,

तुम्हारी राह तके है राधा,

भूल न जाना अपना वादा,

ये बात बांध लॊ गठरिया में !३!!आ जाना श्याम नगरिया में,,,,,,,,,,,

घर में राधा आज अकेली,

नहीं साथ में कॊई सहेली,

वॊ सॊई है ऊपर अटरिया में !!४!!आ जाना श्याम नगरिया में,,,,,,,,,,