Sunday, July 17, 2011

दिल्ली

दिल्ली,,,,,,,,,
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कुर्सी पे मग्न खुश हॊ रही है दिल्ली !
फटते हैं बम और सॊ रही है दिल्ली !!१!!

इसकी हिम्मत की दाद देता हूँ मैं,
निकम्मों का बोझ ढ़ो रही है दिल्ली !२!!

भेड़ियों को पहचान देते देते अब,
खुद की पहचान खो रही है दिल्ली !!३!!

लुटनें से काश कॊई बचा लेता,
वर्षों से सपना संजो रही है दिल्ली !!४!!

मोहब्बत के बाग थे दिलों में कभी,
नफ़रत के बीज बो रही है दिल्ली !!५!!

इसके आंसुओं में छिपे हैं "राज़"गहरे,
मगरमच्छ के आंसू रॊ रही है दिल्ली !!६!!

"राजबुँदेली"
१७/७/२०११

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