Monday, February 13, 2012

कब तक चलेगा,,,,,,,

कब तक चलेगा,,,,,,,
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उधार, उधार पे उधार, कब तक चलेगा ।
किसान हुआ कर्जदार, कब तक चलेगा ॥१॥


बच्चे पढ़ लिखकर बेरोजगार फ़िर रहे,
आरक्षण का हथियार, कब तक चलेगा ॥२॥


खानॆ को चार पेट कमाने को दो हांथ,
यूँ हमारा घर-परिवार, कब तक चलेगा ॥३॥


दबंग हैं जब तक ज़िंदगी से लड रहे हैं,
ये खेल आखिरकार, कब तक चलेगा ॥४॥


वह गालियों से शुरुआत करता है बात,
आरक्षण  का थानेदार,कब तक चलेगा ॥५॥

आज नहीं तो कल मिलता है

आज नहीं तो कल मिलता है
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यहां आज नहीं तो कल मिलता है !
सबको करनी का फ़ल मिलता है !!


यह दुनिया बड़ी फ़रेबी है भाई,
कदम कदम पर छल मिलता है !!


मासूका को कौन घुमाये गाड़ी में,
इतना मँहगा डीज़ल मिलता है !!


बस्ती में बाढ़ , फ़सल में इल्ली,
भूखा चूल्हा सूखा नल मिलता है !!


इस बार चुनाव लड़ेगा ये शायद,
लोगों से वह तो पैदल मिलता है !!


जनता की किस्मत फ़ूटी समझो,
जब भी कोई सिब्बल मिलता है !!


  कवि-राज बुन्दॆली

इशारॊं-इशारॊं सॆ,,,, ----------------------

इशारॊं-इशारॊं सॆ,,,,
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इशारॊं-इशारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥
आज सितारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥१॥

गुलॊं सॆ मॊहब्बत, है हर एक कॊ,
क्यूं न ख़ारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥२॥


यह हवॆली महफ़ूज़, है या कि नहीं,
इन पहरॆदारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥३॥


रॊटी की कीमत, समझ मॆं आ जायॆ,
जॊ बॆरॊजगारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥४॥


उस की आबरू, नीलाम हॊगी कैसॆ,
चलॊ पत्रकारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥५॥

किसकी सिसकियां, हैं उन खॆतॊं मॆं,
"राज"जमींदारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥६॥


कवि-"राज बुन्दॆली"

आपकॆ लियॆ,,, ----------------

आपकॆ लियॆ,,,
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जॊ भी तकलीफ़ॆं उठाईं, उस्ताद आपकॆ लियॆ ॥
पावॊं मॆं फ़ट गईं बिंबाईं,उस्ताद आपकॆ लियॆ ॥१॥

हमारॆ चाल-चलन की, मिसाल दॆतॆ हैं लॊग,
हम नॆं मुर्गियां चुराईं, उस्ताद आपकॆ लियॆ ॥२॥

पतंगबाजी हमारॆ,बाप दादा भी जानते न थे,
हमनॆं तॊ पतंगॆं उड़ाईं, उस्ताद आपकॆ लियॆ ॥३॥

घुड़सवारी न करतॆ, लंगड़ॆ न हॊतॆ ज़नाब,
नई घॊड़ियां मगवाईं, उस्ताद आपकॆ लियॆ ॥४॥

इश्क की ए.बी.सी.डी, भला क्या जानॆं हम,
वह बन संवर कॆ आईं, उस्ताद आपकॆ लियॆ ॥५॥

अक्सर फ़ॆर लॆतीं हैं नज़रॆं, दॆख करकॆ हमॆं,
आज आतॆ ही मुस्कुराईं,उस्ताद आपकॆ लियॆ ॥६॥

नागफ़नी कह कॆ, बुलाता है मॊहल्ला जिन्हॆं,
हाय!क्या गज़ब शरमाईं, उस्ताद आपकॆ लियॆ ॥७॥

कह दिया किसी नॆ कि, उस्ताद चल बसॆ,
आंखॊं सॆ नदियां बहाईं,उस्ताद आपकॆ लियॆ ॥८॥

बड़ॆ पाप्युलर हॊ आप तॊ, मॊहल्लॆ मॆं अपनॆं,
रॊईं घर-घर मॆं लुगाईं, उस्ताद आपकॆ लियॆ ॥९॥

बड़ॆ शायरॊं मॆं तॊ हमारा, भी नाम है "राज",
दॊ-चार गज़लॆं जॊ उड़ाईं, उस्ताद आपकॆ लियॆ ॥१०॥

    कवि-राज बुन्दॆली,,,,
     ०४/०२/२०१२