Monday, December 27, 2010

राम करे गिर जाय सब, नेताऒं पर गाज !
सिसक रही आवाम अब,रुला रही है प्याज !!
रुला रही है प्याज, गगन चूमे यॆ मँहगाई,
सब्जी शक्कर दाल,और कैसॆ मिलॆ दवाई,
जिन्हे चुना संसद दिया, निकले नमक हराम!
तुम्ही बचाऒ देश अब, हॆ सीतापति श्रीराम!!

Sunday, December 26, 2010

चुन-चुनकर भॆजा जिन्हॆं,निकलॆ नमक हराम !
सिसक रही हर झॊपड़ी, मंत्री सब बदनाम !!
मंत्री सब बदनाम, शहद घॊटालॊं की चाटी !
है गंदा इनका खून, नियत गंदी परिपाटी !!
भारत भाग्य विधाता ,भारत की अब सुन !
हॊ परसुराम अवतार, इन्हॆं मारॆ चुन चुन !!
बापू जब सॆ आपकी,पड़ी नॊट पर छाप !
पड़ॆ-पड़ॆ अब जॆब मॆं,करतॆ रहॊ विलाप !!
करतॆ रहॊ विलाप, तुम बंद तिजॊरी मॆं,
शामिल हॊ गयॆ आप,यहाँ रिश्वतखॊरी मॆं,
सत्य-अहिंसा साधक,हॆ राम नाम कॆ जापू
दॆश हुआ आज़ाद ,क्यूँ बिलख रहॆ हॊ बापू !!

Thursday, December 23, 2010

६. अनॆकता मॆं एकता ......
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तीन ऒर सॆ पखारता है चरण सिंधु,
एक ऒर कवच काया शैलॆश की !!
तीन रंगॊं का तिरंगा यॆ त्रिदॆव जैसा,
बीच मॆं निसानी चक्रधारी चक्रॆश की !!
सरयू की धारा है यमुना का किनारा,
गंगा पाप छारा जटाऒं मॆं महॆश की !!
जाति-धर्म,भॆष भाषाऒं का सागर यहां,
अनॆंकता मॆं एकता विशॆषता है दॆश की !!१!!

शिवा की शक्ति जहाँ प्रह्लाद की भक्ति जहाँ,
छत्रसाल छत्र छाया है रत्नॆश की !!
अमन की, चैन की, धर्म की, न्याय की,
विधान-संविधान संम्प्रभुता जनादॆश की !!
स्वराज की,समाज की,लॊकशाही“राज" की,
पहली किरण तॆज बरसाती दिनॆश की !!
एकता कॆ बॊल सॆ डॊलतॆ सिंहासन जहाँ ,
अनॆकता मॆं एकता विशॆषता है दॆश की !!२!!

गाँधी की प्रीति यहाँ नॆहरू की नीति यहाँ ,
कवियॊं कॆ गीत मॆं है रीति संदॆश की !!
दॆश मॆं, विदॆश मॆं, हॊं किसी भी भॆष मॆं,
एकता की कड़ी जुड़ी जनता धर्मॆश की !!
जाति-धर्म, भॆद-भाव भूल जातॆ लॊग सब,
आती हैं आँधियाँ जब दॆश मॆं क्लॆष की !!
मूलमंत्र प्रजातंत्र है प्यारा गणतंत्र यहां,
अनॆकता मॆं एकता विशॆषता है दॆश की !!३!!

राम की जन्मभूमि कर्म-भूमि कृष्ण की,
युद्ध-भूमि है शिवा और रांणा भूपॆष की !!
वीणा झंकार यहां हैं दुर्गा अवतार यहां,
सप्त-स्वर मॆं हॊती है वंदना गणॆश की !!
एकता की धाक नॆं खा़क मॆं मिलाई थी,
पार कर सागर स्वर्ण नगरी लंकॆश की !!
मिटाया आतंक अहिरावण का पाताल तक,
अनॆकता मॆं एकता विशॆषता है दॆश की !!४!!


"कवि-राजबुंदॆली"
९. असली गद्दार वही हैं....
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गांव-गांव मॆं बच्चा-बच्चा,इस माँ की गाथा गाता है,
भारत माँ कॆ चरणों मॆं, सबका माथा झुक जाता है,
यॆ बॊली और भाषायॆं सब, भारत माँ की आँखॆं हैं,
इस सॊनॆ की चिड़िया की , समझॊ अगणित पाँखॆं हैं,
इस मिट्टी कॆ प्रति, जिनके मन मॆं, पूजा प्यार नहीं है !!
हॊं किसी जाति-धर्म, प्रांत कॆ, बस असली गद्दार वही है !!
हल्दीघाटी की माटी नॆं, कब किसका बैर सहा है,
गंगा-यमुना की धारा नॆं,कब किसको गैर कहा है,
वीर शिवा की गाथा, जब जब भूषण कवि गायेगा,
छत्रसाल कॆ विजय-युद्ध, इतिहास सदा दॊहरायॆगा,
यहां वंदॆ-मातरम का गायन, जिनकॊ भी स्वीकार नहीं है !!
हॊं किसी जाति-धर्म, प्रांत कॆ बस.............................
जब भी प्रलय दॆश पर आया, सबनॆं हाँथ मिलाया,
उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम, हम सबनॆं साथ निभाया,
आज़ादी कॆ उस महापर्व सॆ, कॊई अछूता नहीं रहा,
जलियाँबाग गवाही दॆता, किसका शॊणित नहीं बहा,
जिनकॆ माथॆ कॊ इस, मिट्टी का चंदन अंगीकार नहीं है !!
हॊं किसी जाति-धर्म, प्रांत कॆ बस..............................
लाल-बाल-पाल थॆ आँधी, संग गाँधी और जवाहर थॆ,
आज़ाद-भगत, सुखदॆव-गुरु, आज़ादी कॆ नर-नाहर थॆ,
इन बलिदानी अमर शहीदॊं का, जॊ न सम्मान करॆ,
भारत भूमि मॆं रह कर, भारत माँ का अपमान करॆ,
अब जयचंदॊं कॊ भारत मॆं, रहनॆ का कॊई अधिकार नहीं है !!
हॊं किसी जाति-धर्म, प्रांत कॆ बस...............................



"कवि-राजबुंदॆली"
१२. मैं शब्द-शब्द अँगार लिखूँगा......
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सूरज की पहली किरणॆं, स्वर्णिम चादर फैलायॆं,
गंगा, यमुना, काबॆरी सब,जन-गण मंगल गांयॆं,
सीना तानॆं खड़ा हिमालय,नभ का मस्तक चूमॆं,
विश्व-विजयी तिरंगा प्यारा, मन मस्ती मॆं झूमॆं,
कॊयल की कू-कू बॊली, भौंरॊं की गुंजार लिखूँगा !!१!!
आँख उठॆगी मॆरॆ दॆश पर, शब्द-शब्द अंगार लिखूँगा !!
घर का हॊ या बाहर का,या फिर टट्टू भाड़ॆ वाला हॊ,
जीवन दान नहीं पायॆगा,चाहॆ सत्ता का मतवाला हॊ,
सत्ता सिंहासन पाकर क्यूं,लूटम-लूट मचा दी तुमनॆं,
यहां एकता पूजी हमनॆं,यॆ कैसी फूट मचा दी तुमनॆ,
वीणा की झंकार लिखूंगा, काली की हुंकार लिखूंगा !!२!!
आँख उठॆगी मॆरॆ दॆश पर, शब्द-शब्द..................
आज़ादी का वह सपना, टूटा और चकना- चूर हुआ,
आज तुम्हारी करतूतॊं सॆ, इंसा कितना मज़बूर हुआ,
एक और महा-भारत, अब जनता तुमसॆ चाह रही है,
हॊ शंखनाद जन-क्रांति का, शॊलॊं की परवाह नहीं है,
भगतसिंह कॆ हाथॊं मॆं, जंज़ीरॊं की खनकार लिखूंगा !!३!!
आँख उठॆगी मॆरॆ दॆश पर, शब्द-शब्द...................
यह सॊनॆ की चिड़िया है, कैद कर्ज़ कॆ पिंजड़ॆ मॆं,
खा रहॆ विदॆशी सबकुछ, इन नॆताऒं कॆ झगड़ॆ मॆं,
खाकर नमक दॆश का,तलुवॆ अमरीका कॆ चाट रहॆ,
राम-श्याम की धरती, क्यॊं दीवारॊं मॆं हॊ बांट रहॆ,
धर्मॊं कॆ सीनॆं पर मैं, खूनी खंज़र का वार लिखूंगा !!४!!
आंख उठॆगी मॆरॆ दॆश पर, शब्द-शब्द...................


"कवि-राजबुंदॆली"
११. श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा........
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कल मैंनॆ भी सोचा था कॊई, श्रृँगारिक गीत लिखूं ,
बावरी मीरा की प्रॆम-तपस्या, राधा की प्रीत लिखूं ,
कुसुम कली कॆ कानों मॆं,मधुर भ्रमर संगीत लिखूं,
जीवन कॆ एकांकी-पन का,कॊई सच्चा मीत लिखूं,
एक भयानक सपनॆं नॆं, चित्र अनॊखा खींच दिया,
श्रृँगार सृजन कॊ मॆरॆ, करुणा कृन्दा सॆ सींच दिया,
यॆ हिंसा का मारा भारत, यह पूँछ रहा है गाँधी सॆ,
कब जन्मॆगा भगतसिंह, इस शोषण की आँधी सॆ,
राज-घाट मॆं रोता गाँधी, अब बॆवश लाचार लिखूंगा !!
दिनकर का वंशज हूं मैं, श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा !!१!!

चिंतन बदला दर्शन बदला, बदला हर एक चॆहरा,
दही दूध कॆ सींकॊं पर, लगा बिल्लियॊं का पहरा,
इन भ्रष्टाचारों की मंडी मॆं, बर्बाद बॆचारा भारत है,
जलती हॊली मे फंसा हुआ,प्रह्लाद हमारा भारत है,
जीवन का कडुआ सच है, छुपा हुआ इन बातॊं मॆं,
अधिकार चाहिए या शॊषण,चयन तुम्हारॆ हाथॊं मॆं,
जल रही दहॆज की ज्वाला मॆं,नारी की चीख सुनॊं,
जीवन तॊ जीना ही है, क्रांति चुनॊं या भीख चुनॊं,
स्वीकार तुम्हॆं समझौतॆ, मुझकॊ अस्वीकार लिखूंगा !!
बरदाई का वंशज हूं मैं, श्रंगार नहीं अंगार लिखूंगा !!२!!
दिनकर का वंशज हूं मैं...........

उल्टी-सीधी चालें दॆखॊ, नित शाम सबॆरॆ कुर्सी पर,
शासन कर रहॆ दुःशासन,अब चॊर लुटॆरॆ कुर्सी पर,
सत्ता-सुविधाऒं पर अपना, अधिकार जमायॆ बैठॆ हैं,
गांधी बाबा की खादी कॊ, यॆ हथियार बनायॆ बैठॆ हैं,
कपट-कुटी मॆं बैठॆ हैं जॊ, परहित करना क्या जानॆं,
संगीनॊं कॆ सायॆ मॆं यॆ, सरहद का मरना क्या जानॆं,
अनगिनत घॊटालॆ करकॆ भी,जब पा जायॆं बहाली यॆ,
अमर शहीदॊं कॆ ताबूतॊं मॆं, क्यूं ना खायॆं दलाली यॆ,
इन भ्रष्टाचारी गद्दारॊं का, मैं काला किरदार लिखूंगा !!
नज़रुल का वंशज हूं मैं, श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा !!३!!
दिनकर का वंशज हूं मैं...........

कण-कण मॆं सिसक रही,आज़ाद भगत की अभिलाषा,
अब्दुल हमीद की साँसॆं पूंछें, हैं आज़ादी की परिभाषा,
कब भारत की नारी कब, दामिनी बन कर दमकॆगी,
कब चूडी वालॆ हाँथॊं मॆं, वह तलवार पुरानी चमकेगी,
अपनॆं अपनॆं बॆटॊं कॊ हम, दॆश भक्ति का पाठ पढा दॆं,
जिस माँ की गॊदी खॆलॆ, उसकॆ चरणॊं मॆं भॆंट चढा दॆं,
भारत माँ कॆ बॆटॊं कॊ ही, उसका हर कर्ज चुकाना है,
आऒ मिलकर करॆं प्रतिज्ञा, माँ की लाज बचाना है,
सिसक रही भारत माँ की, मैं बहती अश्रुधार लिखूंगा !!
कवि-भूषण का वंशज हूं मैं,श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा !!४!!
दिनकर का वंशज हूं मैं..............

"कवि-राजबुंदॆली"
१. .........माँ सरस्वती वंदना........
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वीणा की तान छॆड़, वरदान दीजै माता !!
हम बालक नादान,हमॆं ज्ञान दीजै माता !!
जाति-भॆद धर्म-भॆद, उपजॆं न मन मॆं,
मॊह-मद सॆ दूर रहॆं,तॆरी शरण मॆं,
भक्ति-भाव श्रद्धा का,रस पान दीजै माता !!१!!
हम बालक नादान, हमॆं......................
भाव भरॊ ऎसा, न मन मॆं गुमान हॊ,
साहित्य सृजन हॊ, जन ककल्याण हॊ,
नीति न्याय बुद्धि मॆं, सुजान कीजै माता !!२!!
हम बालक नादान, हमॆं........................
सत्य की राह चलॆं, सदा निज धर्म सॆ,
पग डोलनॆं न पायॆं, कभी निज कर्म सॆ,
वॊ भव-पारक शक्ति हमॆं,प्रदान कीजै माता !!३!!
हम बालक नादान, हमॆं........................
तम-विनाश हॊ,नव-किरण कॆ प्रकाश सॆ,
कलम कॊ बचा लॊ, कलयुग कॆ ग्रास सॆ,
एकता का ज्ञान भी, हमॆं दान दीजै माता !!४!!
हम बालक नादान, हमॆं........................
वीणा वरदायिनी सुनॊ, हॆ वॆद-वाणी सुनॊं
शारदॆ भवानी हॆ, सरस्वती महरानी सुनॊं,
"राज़" हॊवॆ न निराश,आप ध्यान दीजै माता !!५!!
हम बालक नादान, हमॆं.................
"कवि-राजबुंदॆली"
२०. यह बंद कब बंद हॊगी.........
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कितनॆं भलॆ लगतॆ हैं,
शहर कॆ...
गली,सड़क,चौराहॆ,
हंसतॆ-खॆलतॆ, उछलतॆ, खिलखिलातॆ,
मासूम बच्चॆ..
नन्हॆं-नन्हॆं हांथॊं मॆं..
पतंग की डॊर, क्रिकॆट गॆंद, गिल्ली-डंडा
स्थिरता कॆ सपनॆं संजॊयॆ
बिल्कुल...
सत्ताधारी पार्टी की तरह !!१!!
आसमान पर मंडरातीं
अनॆंकॊं रंग-बिरंगी पतंगॆं
अंतर्जातीय विवाहित सगी बहनॊं की तरह,
ब्याकुल हैं....
गलॆ मिलकर आत्म-ब्यथा
सुनानॆं कॆ लिए..
तभी...
सांम्प्रदायिक हांथ खींचतॆ हैं,
रस्सियां...कस दॆतॆ हैं...
कसाव..
हर एक गर्दन पर,
और
कभी नहीं हॊ पाता है,
मॆल
भावनांऒं और संभावनाऒं का !!२!!
अचानक.....स्तब्धता....
भय, आक्रॊश का धुंआ,
ढ़क लॆता है समूचा शहर,
खुसफुसातीं हैं आम आदमी की
आवाज़ॆं.........शायद........
जर्जर व्यवस्थाऒं कॆ खंडहर मॆं,
फिर हुआ है.....अनादर,
चौंक पर खड़ी महानता की,
किसी निर्जीव प्रतिमा का,...
या फिर...
जाग गया है......
निर्धन, शॊषित, दलित का आक्रॊश !!३!!
अंध-विश्वासी महा-डांकिनी
मांग रही है बलिदान..
अनगिनत.........
सजीव, बॆ-कसूरॊं और मासूमॊं का,
दॆखतॆ ही दॆखतॆ बदल गया माहौल,
समूचॆ शहर का उथल-पुथल दृश्य,
चीखॊं मॆं तब्दील हॊ गईं
नन्हीं किलकारियां,
बिखरनॆं लगॆ हैं सारॆ सपनॆं,
शहर मॆं
कॊई नहीं है, बॆखौफ़ आतंक कॆ शिवाय !!४!!
अचानक....
हंसती-मुस्कुराती दुकानॆं
गिरा लॆतीं हैं शटर, छुपा लॆतीं हैं मुंह,
समाज सॆ..
बलात्कार की शिकार किसी
असहाय अबला कि तरह,
सड़क पर खड़ी बसॆं, कारॆं, पटरियॊं पर,
रुकीं रॆलगाड़ियां भी,
धूं-धूं जलनॆं लगतीं हैं बिना दहॆज़ वाली
नव-वधू की तरह..
गुम हवा मॆं डूबता उतराता है सिर्फ़ मातम !!५!!
समूचा जीवन बंद है
बस एक छॊटॆ सॆ कमरॆ मॆं,
अगली सूचना मिलनॆं तक,
क्यॊंकि.....
बाहर... अब खॆल जारी है,
सियासती शतरंज का,
साम्प्रदायिकता की बिसात पर
आतंक फॆंकता है इच्छानुसार पांसॆ,
और....
आम आदमी प्यादॆ की तरह,
डरता हुआ एक-एक कदम बढ़ता आगॆ,
एक घर, दूसरा घर, तीसरा घर..
सिर्फ़ स्वाभिमान बचानॆं कॆ लिए,
अंततः कॊशिशॆं तॊड़ दॆतीं हैं दम,
मारा जाता है बॆचारा बॆ-मौत,
अढ़ाई घर का सफ़र......
पूरा नहीं कर पाता पूरॆ जीवन-काल मॆं !!६!!
हर आंख कमरॆ कॆ बाहर
दरवाजॆ की झिर्रिय़ॊं सॆ झांकती है,
सहमी हुई.....मगर...
दूध, पानी, घासलॆट, तरकारी की
चिंताग्रस्त !
नन्हॆं-नन्हॆं हांथ खॊलतॆ हैं खिड़कियां,
आहिस्ता-आहिस्ता....
मासूम आंखॆं झांकती हैं,
बाहर का दृश्य वह...
डाल पर बैठी मैना,
पॆड़ सॆ उतरती गिलहरी,
बछड़ॆ कॊ दूध पिलाती गाय,
और....
पड़ॊसी की मुंड़ॆर पर बैठा,
मुस्कुराता कौआ,
इंसान कॆ अलावा यॆ कॊई नहीं जानतॆ,
साम्प्रदायिकता की परिभाषा,
मासूम आँखॆं
पलटकर दादी मां की गॊद मॆं
रख दॆतीं हैं अपना सिर..
और............
तॊतली आवाज़ मॆं पूंछती हैं,
दादी मां..
यह बंद कब बंद हॊगी.....कब बंद हॊगी !!७!!


"कवि-राजबुंदॆली"
२२. भारत माँ का चीरहरण.........
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सचमुच
कॊई नहीं बचा है,
हम सभी तॊ घिरॆ हैं,
आवश्यक्ताऒं कॆ चक्रव्यूह मॆं,
महाभारत कॆ अभिमन्यु की तरह,
तॊड़तॆ जा रहॆ हैं
हर एक अवरॊधक द्वार,
निरंतर......
बढ़तॆ चलॆ जा रहॆ हैं..
व्यूह-कॆन्द्र की दिशा मॆं,
यह जानतॆ हुयॆ कि...
आज का कॊई भी अभिमन्यु..
नहीं निकल सकता है
बाहर
इन आवश्यक्ताऒं कॆ
चक्रव्यूह सॆ,
वह श्रॆष्ठता का पुजारी द्रॊंण
दॆखना चाहता है अन्त..
आज कॆ हर बॆरॊजगार
अभिमन्यु का..
तभी तॊ वह मांग लॆता है..
निर्दॊष एकल्व्य का अंगूठा,
या फिर...
रच दॆता है व्यूह का जाल,
जानता है
वह
भली-भांति,
सत्ता सिंहासन पर बैठा
यह अंधा सम्राट..
क्या दॆखॆगा और क्या सु्नॆंगा
विनाश कॆ शिवाय,
जन्माँध नहीं है वह,
समूचा..
मदान्ध हॊ गया है,
पाकर गान्धारी रूपी कुर्सी का
मदमस्त यौवन-अंक..
आज जरासंघॊं कॆ भार सॆ
बॊझिल है धरा..
अब एक नहीं....
अनॆकॊं..
कान्हाऒं कॊ लॆना हॊगा
जन्म एक साथ..
इस धरा पर,
शायद....
तब कट सकॆंगी...
नन्द बाबा की बॆड़ियाँ..
मरॆंगॆ अनगिनत कंस और शिशुपाल..
बच सकॆगी द्रॊपदि्यॊं की लाज,
और....
रुक सकॆगा..
भारत माँ का...
चीरहरण...चीरहरण...चीरहरण....


"कवि-राजबुँदॆली"
१८. सुदामा की झॊपड़ी........
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शहर कॆ बीचॊं-बीच
मुख्य सड़क कॆ किनारॆ,
दरिद्रता कॆ परिधान मॆं लिपटी,
निहारती है दिन-रात ,
गगन चूमती इमारतॊं कॊ,
वह सुदामा की झॊपड़ी,
कह रही है..
कब आयॆगा समय...
कृष्ण और सुदामा कॆ मिलन का,
अब तॊ जाना ही चाहियॆ..
सुदामा कॊ,
आवॆदन पत्र कॆ साथ,
उस सत्ताधीश कॆ दरबार मॆं,
कहना चाहि्यॆ,
अब कॊई भी झॊपड़ी
महफ़ूज़,नहीं है.....
तॆरॆ शासनकाल मॆं,
हजारॊं आग की चिन्गारियां,
बढ़ती आ रही हैं
मॆरी तरफ़..
गिद्ध जैसी नजरॆं गड़ायॆ हुयॆ
यॆ
तॆरॆ शहर कॆ बुल्डॊजर,
कल..........
मॆरी गरीबी कॆ सीनॆ पर
तॆरा,
सियासती बुल्डॊजर चल जायॆगा !!
और................
सुदामा की झोपड़ी की जगह,
कॊई डान्स-बार खुल जायॆगा !!


"कवि-राजबुंदॆली"
१६. राम मिलॆं तॊ कह दॆना....
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तुलसी बाबा
राम मिलॆं तॊ कह दॆना, भॆष बदल कर आयॆंगॆ !!
क्रॆडिट कार्ड जरूरी है वरना,भूखॆ ही मर जायॆंगॆ !!
लम्बॆ बालॊं का चलन नहीं, जटा-जूट कटवा लॆंगॆ !
फ़ैसन-शॊ कॆ दर्जी सॆ वह, कॊट-सूट सिलवा लॆंगॆ !!
कॊट पैंट की मैचिंग हॊ, गलॆ लटकती टाई पर !
ढ़ाई तॊलॆ की चैन और,सिटीज़न घड़ी कलाई पर !!
क्लीन सॆव कॊ तॊ, ज़िलॆट सटासट मिल जायॆगा !
फ़ैरन लह्वली सॆ मुरझाया,चॆहरा भी खिल जायॆगा !!
बाटा की अब कदर नहीं,दाउद का सूज मगांयॆंगॆ !!१!!
तुलसी बाबा राम मिलॆं तॊ.................................

समय बितानॆं कॆ अब, साधन भरपूर यहां पर हैं !
नाईट-क्लब हैं डांस बार हैं,और सिनॆमा घर हैं !!
कॆबल की सुविधा है,बस बात एक सौ सत्तर की !
घर बैठॆ दॆख सकॆंगॆ श्रीराम, कहानी घर-घर की !!
विज्ञान प्रगति सॆ, भारत मॆं, भारी फर्क पड़ा है !
त्रॆतायुग सॆ कलयुग का, कहना नॆटवर्क बड़ा है !!
सिया-हरण हॊनॆ जाँयॆं,तॊ घबरानॆं की बात नहीं !
उन्हॆं छुपा कर रखॆ,अब रावण की औकात नहीं !!
यॆ टी.वी. कॆ सब न्यूज चॆनल, फ़ॊटॊ सहित दिखायॆंगॆ !!२!!
तुलसी बाबा राम मिलॆं तॊ...................................

अगर सुरक्षा चाहॆं अपनीं, बाँडी-गार्ड ज़रूरी है !
पुलिस लगी है चॊरॊं मॆं,शासन की मज़बूरी है !!
ढ़ॊल मज़ीरॆ से अब, हॊतॆ ध्वनि प्रदूषण हैं !
भजन कीर्तन रॊकॆं, खाकी कॆ खर-दूषण है !!
बड़ा कड़ा कानून यहाँ,कई बलवान लिपट गयॆ !
एक हिरण कॆ लफड़ॆ मॆं,सलमान सिमट गयॆ !!
नाज़ायज अस्त्र-शस्त्र,तॊ भारत मॆं राम मना है !
लायसॆंस की खातिर,यहाँ कमिस्नर धाम बना है !!
धनुष-बाँण हॊ चुकॆ पुरानॆं, अब ए.कॆ.छप्पन लायॆंगॆ !!३!!
तुलसी बाबा राम मिलॆं तॊ................................

चुनाव अगर लड़ना हॊ, मतदाता कार्ड ज़रूरी है !
गांधी जी की भॆंट चढ़ा दॆं, नामांकन की मंजूरी है !!
इंटरव्यू मॆं कह दॆंगॆ,जनहित मॆं दसरथ मरण हुआ !
प्रतिद्वंदी की साट-गांठ सॆ, पत्नी का अप-हरण हुआ !!
अब मंदिर का मुद्दा उनकॊ, आ स्वयं उठाना हॊगा !
कुछ आश्वासन दॆकर, अड़वानी कॊ समझाना हॊगा !!
भारी बहुमत सॆ जीतेंगॆ, जॊ जन-विवॆक कॊ हर लॆंगॆ !
बॊगस वॊटिंग बूथ कैप्चरिंग,बंदर -भालू सब कर लॆंगॆ !!

त्रॆतायुग मॆं दुख राम सहॆ, अब तॊ सुख-राम कहायॆंगॆ !!४!!
तुलसी बाब राम मिलॆं तॊ.....................................

"कवि-राजबुंदॆली"

Wednesday, December 22, 2010

२. गुरू महिमा.........
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तुम ही माता पिता तुम्ही हॊ, तुम ही भाग्य विधाता हॊ !!
तुम हॊ ममता कॆ सागर, गुरू तुम ही ज्ञान कॆ दाता हॊ !!
अपनॆं आशीष की छाया,रखना हम पर हॆ गुरुवर,
जैसॆ तपतॆ पाहन कॊ,गॊद छुपायॆ रहता है तरुवर,
भटक रहॆ थॆ अंधकार मॆं, ज्ञान दीप दिखलाया है,
तुम जलॆ दीप बन कर, तब नया सबॆरा आया है,
हम नभ मॆं उड़तॆ बादल, तुम प्रखर पवन सुख दाता हॊ !!१!!
तुम हॊ ममता कॆ सागर, गुरू.................................
सत्य -अहिंसा का मारग, तुम नॆं ही दिखलाया है,
पर-हित मॆं जीना मरना, तुम नॆं ही सिखलाया है,
बाँह पकड़कर राह दिखाई, बॊलॆ बॆटॊ चलना सीखॊ,
नव युग कॆ मृग-शावक,उठना और संभलना सीखॊ,
हम युग कॆ बस पथ-प्रहरी, तुम तॊ युग कॆ निर्माता हॊ !!२!!
तुम हॊ ममता कॆ सागर, गुरू..................................
शब्द ज्ञान की खुशबू सॆ, महका जग कॊना-कॊना,
स्पर्श आपका पा कर यॆ, तन-मन हॊ जाता सॊना,
संकल्पित मन कहता है,प्रयास सदा आबाद रहॆगा,
हर क्षण इस जीवन मॆं, नाम आपका याद रहॆगा,
हम कागज़ कॆ कॊरॆ पन्नॆ, तुम लॆखक हॊ, बिख्याता हॊ !!३!!
तुम हॊ ममता कॆ सागर, गुरू..................................
सांसॆं छॊड़ रहीं हॊं संग,तॊ बदन की हालत क्या हॊगी,
माली हॊ उपवन कॆ फिर,चमन की हालत क्या हॊगी,
यॆ हँसती मुस्कातीं कलियाँ, जानॆं कौन डगर जायॆंगी,
दिशा हीन हॊ जायॆंगी, या फिर रॊतॆ-रॊतॆ मर जायॆंगी,
हम पाहन कॆ अनगढ़ टुकड़ॆ,तुम शिल्पी रूप प्रदाता हॊ !!४!!
तुम हॊ ममता कॆ सागर, गुरू......................

२४/१२/२०१० "कवि-राजबुंदॆली"

नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है,

३. नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है......
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उम्मीदॊं नॆ दर्पण दॆखा,सपनॊं का मंदिर टूटा पाया !
जॊ बैठा सिंहासन पर, जनता कॊ बस लूटा खाया !!
करुणा-कृंदित कितनी, पारी अब तक खॆल चु्कॆ हैं !
हम अपनॆं सीनॆ पर, अगणित तूफ़ाँ झॆल चुकॆ हैं !!
नव-चिंतन का दीप जलाऒ, तॊ नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है !!१!!
यह खूनी अध्याय मिटाऒ, तॊ नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है !!
अब तक दॆखीं हैं हमनॆं, उथल-पुथल की सदियां,
मासूमॊं की चीखॆं और, बहती शॊणित की नदियां,
दंगॊं कॆ दल-दल मॆं है, यह दॆश समूचा धंसा हुआ,
रक्त-पिपाषित मानव भी, काल-कंठ मॆं फंसा हुआ,
अब धर्म-वाद सॆ दॆश बचाऒ, तॊ नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है !!२!!
यह खूनीं अध्याय मिटाओ, तॊ..................................
कितनी बहनॊं नॆं, राखी-बंधन कुर्बान कियॆ हैं,
कितनीं माताऒं नॆं, बॆटॊं कॆ बलिदान दियॆ हैं,
कितनी माँगॊं सॆ हमनॆं, सिंदूर उजड़तॆ दॆखॆ हैं,
कितनॆं कुल कॆ दीप, यहां अर्थी चढ़तॆ दॆखॆ हैं,
अब नूतन किरण दिखाऒ, तॊ नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है !!३!!
यह खूनी अध्याय मिटाऒ, तॊ.................................
स्वार्थ-समंदर मॆं लहराती, राजनीति की नैया,
नहीं किनारा हमनॆं पाया, बदलॆ गयॆ खॆवैया,
कुर्सी पाकर सब नॆता, अपनी चालॆं सॊच रहॆ,
सॊन-चिरैया कॆ पर, बारी-बारी सब नॊंच रहॆ,
दॆश दलालॊं सॆ मुक्ति दिलाऒ,तॊ नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है !!४!!
यह खूनीं अध्याय मिटाऒ, तॊ................................
नव वर्ष अगर आना, नव विकास की आंधी लाना,
सत्य-अहिंसा की लाठीवाला, वापस वॊ गाँधी लाना,
रंग दॆ बसंती चॊला गातॆ,आज़ाद-भगत कॊ आनॆ दॊ,
राष्ट्र-तिरंगा यॆ भारत का,दुनियाँ भर मॆं फ़हरानॆं दॊ,
जन-जन मॆं सद्भाव जगाऒ,तॊ नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है !!५!!
यह खूनीं अध्याय मिटाऒ, तॊ.................................


२३/१२/२०१० "कवि-राजबुंदॆली"

Saturday, December 18, 2010

तॊ कॊई बात बनॆं,,,,,,,,,,,,,,
आग नफ़रत की बुझाऒ तॊ कॊई बात बनॆं !
दिलॊं कॊ दिल सॆ मिलाऒ तॊ कॊई बात बनॆं !!
आज गर्दिश मॆं है आबरू अपनॆं वतन की,
उजड़ता चमन यॆ बचाऒ तॊ कॊई बात बनॆं !!
रंजिश कॆ अंधॆरॊं मॆं क्यूँ भटकतॆ हॊ तुम,
चिराग मॊहब्बत कॆ जलाऒ तॊ कॊई बात बनॆं !!
ईद का दिन हॊ या फ़िर रात हॊ दीवाली की,
त्यॊहार मिलकॆ मनाऒ तॊ कॊई बात बनॆं !!
मंदिरॊ-मस्जिद गिरानॆ सॆ क्या फ़ायदा,
सियासती दीवार गिराऒ तॊ कॊई बात बनॆं !!
नफ़रत की आग मॆ न जलाऒ आशियाँ,
"राज"बॆघर का घर बसाऒ तॊ कॊई बात बनॆं !!
११/१२/२०१०
माँ,,,,,,,,,,,
कौन कहता है माँ कॆ कलॆजॆ मॆं पीर नहीं हॊती !
वॊ तॊ किलकारियाँ सुनकर गंभीर नहीं हॊती !!
एक डॊर मॆं बाँध लॆती है जॊ समूचॆ संसार कॊ,
ममता सॆ मज़बूत कॊई भी जंज़ीर नहीं हॊती !!
कितनी मीठी लगती है उसकॆ हाँथ की रॊटी,
जिसकॆ मुकाबिल दुनियाँ की खीर नहीं हॊती !!
पल भर मॆं मिल जातीं हैं खुशियाँ ज़मानॆ की,
माँ कॆ आँचल सॆ बड़ी कॊई ज़ागीर नहीं हॊती !!
न जानॆं क्यूँ लॊग खातॆ हैं नींद की गॊलियाँ,
इनमॆं लॊरियॊं सॆ ज्यादा तासीर नहीं हॊती !!
ढाल बन जातीं हैं यॆ अपनीं औलाद कॆ लियॆ,
माँ की दुवाऒं पॆ कारगर शमशीर नहीं हॊती !!
तूफ़ानॊं सॆ हँस कॆ टकराता है "राजबुँदॆली "
दिल मॆं माँ कॆ शिवाय कॊई तस्वीर नहीं हॊती !!
१८/१२/२०१०