हल्दीघाटी..........
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वही मिला है जग मॆं सब कॊ, जिसनॆं जॊ कुछ बॊया,
मिला ललाट कलंक किसी कॊ,कॊई सम्मान संजॊया,
मात-पिता की सॆवा सॆ बढ़कर, और ना कॊई पूजा है,
निज राष्ट्र-धर्म सॆ ऊँचा जग मॆं, धर्म ना कोई दूजा है,
प्राणॊं की बलि चढ़ जायॆ, मान झुकॆ ना माटी का !!
कंकड़- कंकड़ बॊल रहा है, तुमसॆ हल्दीघाटी का !!१!!
राँणा प्रताप कॆ भालॆ नॆं,लिख दी दॆखॊ अमर कहानी,
स्वाभिमान मॆं मिट ना जायॆ,है उसकी ब्यर्थ जवानी,
पद्मिनियॊं नॆं जौहर करकॆ,अपनी आन नहीं जानॆं दी,
स्वाभिमान कॆ सूरज की, कदापि शान नहीं जानॆं दी,
खौफ़ ना खाया चॆतक नॆं, गजराजॊं की कद काठी का !!२!!
कंकड़- कंकड़ बॊल रहा है,तुमसॆ...................... .......
राजस्थान की धरती नॆं,रणवीरॊं की फ़सल उगाई है,
लाखॊं बॆटॆ बलिदान हुयॆ, तब जाकर आज़ादी पाई है,
इतिहास कॆ पन्नॊं पर, तब यह उन्नत भाल हुई है,
वीरॊं कॆ शॊणित सॆ जब, पूरी हल्दीघाटी लाल हुई है,
नाम अमर हॊ जाता जग मॆं, वीरॊं की परिपाटी का !!३!!
कंकड- कंकड बॊल रहा है,तुमसॆ.....................
वंदन है युवा शक्ति, आगॆ आऒ, अब आगॆ आऒ,
राष्ट्र-धर्म की रक्षा मॆं, तलवार उठाऒ ढ़ाल उठाऒ,
जन-जन मॆं दॆश-भक्ति का,तुम अद्भुत संचार भरॊ,
मुक्त हृदय सॆ इस भारत,मां की जय-जयकार करॊ,
कर्ज़ चुकाना हॊगा हमकॊ, उस दाल और बाटी का !!४!!
कंकड़- कंकड़ यह बॊल रहा है,तुमसॆ......................
कवि-राज बुन्दॆली
०८/०६/२००८
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वही मिला है जग मॆं सब कॊ, जिसनॆं जॊ कुछ बॊया,
मिला ललाट कलंक किसी कॊ,कॊई सम्मान संजॊया,
मात-पिता की सॆवा सॆ बढ़कर, और ना कॊई पूजा है,
निज राष्ट्र-धर्म सॆ ऊँचा जग मॆं, धर्म ना कोई दूजा है,
प्राणॊं की बलि चढ़ जायॆ, मान झुकॆ ना माटी का !!
कंकड़- कंकड़ बॊल रहा है, तुमसॆ हल्दीघाटी का !!१!!
राँणा प्रताप कॆ भालॆ नॆं,लिख दी दॆखॊ अमर कहानी,
स्वाभिमान मॆं मिट ना जायॆ,है उसकी ब्यर्थ जवानी,
पद्मिनियॊं नॆं जौहर करकॆ,अपनी आन नहीं जानॆं दी,
स्वाभिमान कॆ सूरज की, कदापि शान नहीं जानॆं दी,
खौफ़ ना खाया चॆतक नॆं, गजराजॊं की कद काठी का !!२!!
कंकड़- कंकड़ बॊल रहा है,तुमसॆ......................
राजस्थान की धरती नॆं,रणवीरॊं की फ़सल उगाई है,
लाखॊं बॆटॆ बलिदान हुयॆ, तब जाकर आज़ादी पाई है,
इतिहास कॆ पन्नॊं पर, तब यह उन्नत भाल हुई है,
वीरॊं कॆ शॊणित सॆ जब, पूरी हल्दीघाटी लाल हुई है,
नाम अमर हॊ जाता जग मॆं, वीरॊं की परिपाटी का !!३!!
कंकड- कंकड बॊल रहा है,तुमसॆ.....................
वंदन है युवा शक्ति, आगॆ आऒ, अब आगॆ आऒ,
राष्ट्र-धर्म की रक्षा मॆं, तलवार उठाऒ ढ़ाल उठाऒ,
जन-जन मॆं दॆश-भक्ति का,तुम अद्भुत संचार भरॊ,
मुक्त हृदय सॆ इस भारत,मां की जय-जयकार करॊ,
कर्ज़ चुकाना हॊगा हमकॊ, उस दाल और बाटी का !!४!!
कंकड़- कंकड़ यह बॊल रहा है,तुमसॆ......................
कवि-राज बुन्दॆली
०८/०६/२००८
1 comment:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (09-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
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