Saturday, January 15, 2011

नाथूराम गोडसे

अमरवीर नाथूराम गोडसे द्वारा लिखित आखिरी पत्र

प्रिय बंधो चि.दत्तात्रय वि. गोडसे ,

मेरे बीमा के रुपिया अगर आ जाएँ तो उस रुपिया का बिनिभोग आपके परिवार के कार्य के लिए करना.रुपिया २००० आपके पत्नी के नाम पर. रुपिया ३००० चि. गोपाल की धर्मपत्नी के नाम पर और रुपिया २००० आपके नाम पर.इसप्रकार बीमा के कागजों पर मैंने रुपिया मिलने के लिए लिखा है.

मेरी उत्तर क्रिया करने का अधिकार यदि आपको मिलेगा... तो आप आपकी इच्छा से किसी प्रकार इस शुभ कार्य को संपन्न करना.लेकिन मेरी अंतिम विशेष इच्छा यहीं लिखता हूँ.

अपने भारतवर्ष की सीमा रेखा सिंधुनदी है. जिसके किनारे पर वेदों की रचना प्राचीन द्रष्टाओं ने की है.वह सिंधुनदी जिस शुभ दिन में फिर भारत वर्ष की ध्वज की छाया में स्वछंदता से बहती रहेगी उन दिनों मेरी अस्थिओं या रक्षा का कुछ छोटा सा हिस्सा उस सिंधुनदी में बहा दिया जाय.

मेरी यह इछ्चा सत्यसृष्टि में आने के लिए शायद और भी एक दो पिधिओं का समय लग जाय तो मुझे चिंता नहीं.उस दिन तक वह अवशेष वैसा ही रखो और आपके जीवन में वह शुभ दिन न आये तो आपके वारिशों को ये मेरी अंतिम इच्छा बतलाते जाना.

अगर मेरे न्यायलय वक्तव्य को सर्कार कभी वन्ध्मुक्त करेगी तो उसके प्रकाशन का अधिकार भी मै आपको दे रहा हूँ.

मैंने १०१ रुपिया आपको आज दिए हैं जो आप सौराष्ट्र सोमनाथ मंदिर का पुनरोद्धार हो रहा है उसके कलश कार्य के लिए भेज देना.

वास्तव में मेरे जीवन का अंत उसी समय हो गया था जब मैंने गाँधी पर गोली चलायी थी.उसके पश्चात मानो मै समाधी में हूँ और अनासक्त जीवन बिता रहा हूँ.

मै मानता हूँ की गाँधी जी ने देश के लिए बहुत कष्ट उठाये,जिसके लिए मै उनकी सेवा के प्रति और उनके प्रति नतमस्तक हूँ,किन्तु देश के इस सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि का विभाजन करने का अधिकार नहीं था.

मै किसी प्रकार की दया नहीं चाहता और नहीं चाहता हूँ की मेरी ओए से कोई दया याचना करे.

आपने देश के प्रति भक्तिभाव रखना अगर पाप है तो मै स्वीकार करता हूँ की वह पाप मैंने किया है.अगर वह पुण्य है तो उससे जनित पुण्य पद पर मेरा नम्र अधिकार है.

देश भक्ति को पाप कहें यदि

मै हूँ पापी घोर भयंकर

किन्तु रहा वो पुण्य कर्म तो

मेरा है अधिकार पुण्य पर

अचल खड़ा मै इस वेदी पर

मेरा विश्वाश अडिग है,नीति की दृष्टि से मेरा कार्य पूर्णतया उचित है.मुझे इस बात पर लेशमात्र भी संदेह नहीं है की भविष्य में सच्चे इतिहासकार इतिहास लिखेंगे तो मेरा कार्य उचित ठहराएंगे.

आपका सुभेच्च्हू

नाथूराम वि. गोडसे

१४-११-४९


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