Thursday, February 3, 2011

शिव तांडव स्तोत्रं: (श्र...
जटाटवीगलज्जल.प्रवाहपावितस्थले गलेsवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम
डमडमडमडमन्नी.नादवडमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु न: शिव: शिवम् || १ || जटाकटाहसम्भ्रम.भ्रमन्निलिम्पनिर्झरी- विलोलवीचिवल्लरी.विराजमानमूर्धनि | धगधगधगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रति: प्रतिक्षणं मम || २ || धराधरेन्द्रनन्दनी.विलासबन्धुबन्धुर- स्फुरदिगन्तसन्तति.प्रमोदमानमानसे |
कृपाकटाक्षधोरिणी.निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिदिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि || ३ || जटाभुजंगपिंगल.स्फुरत्फणामणिप्रभा- कदम्बकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्वधूमुखे |
मदान्धसिन्धुरस्फूरत्त्व.गुत्तरियमेदुरे मनोविनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि || ४ || सहस्त्रलोचनप्रभृत्य.शेषलेखशेखर- प्रसून धूलिधोरिणी विधूसरांगघ्रिपीठभू: |
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटक: श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखर: || ५ ||ललाटचत्वरज्वल.धनञ्जयस्फुलिंगभा- निपीतपञ्चसायकं नमन्नीलिम्पनायकं |
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु न: || ६ ||करालभालपट्टिका.धगधगधगज्ज्वल- धनञ्जयाहुती.कृतप्रचंडपञ्चसायके |
धराधरेन्द्रनन्दनी.कुचाग्रचित्रपत्रक-प्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचने रतिर्मम || ७ ||नवीनमेघमण्डली.निरुद्धदुर्धरस्फुर-त्कुहूनिशिथिनीतम:प्रबन्धबद्धकन्धर: |
निलिम्पनिर्झरी.धरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुर: कलानिधानबन्धुर: श्रियं जगदधुरन्धर: || ८ ||प्रफुल्लनीलपंकज.प्रपंचकालिमप्रभा- वलम्बीकंठ कन्दली रूचिप्रबद्धकन्धरम |
स्मरच्छीदं पुरच्छीदं भवच्छीदं मखच्छीदं गजच्छीदान्धकच्छीदं तमन्तकच्छीदं भजे || ९ ||अखर्वसर्वमंगला.कलाकदम्बमन्जरी- रस प्रवाह माधुरी विज्रुम्भणामधुव्रतम |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे || १० ||जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रम.भुजंगमश्वस- द्विनिर्गमत्क्रम.स्फुरत्करालभालहव्यवाट |धिमिधिमिधिमिदध्वनि.मृदंगतुंगमंगल- ध्वनिक्रमप्रवर्तित.प्रचण्डताण्डव: शिव: || ११ ||दृषद्विचित्रतल्पयो.भुजंगमौक्तिकस्त्रजो- र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयो: सुह्यद्विपक्षपक्षयो: |
तृणारविन्दचक्षुषो: प्रजामहीमहेन्द्रयो: समप्रवृत्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम || १२ ||
कदा निलिम्पनिर्झरी.निकुन्जकोटरे वसन विमुक्तदुर्मति: सदा शिर:स्थमजलिं वहन |
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नक: शिवेतिमन्त्रमुच्चरन कदा सुखी भवाम्यहम || १३ ||
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्त.मोत्तमं स्तवं पठन स्मरन ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम || १४ ||
दशवक्त्रगीतं य: शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाती शम्भु: || १५ || ||
इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम ||
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मज वा श्रवननयनजं वा मानसं वाsपराधाम|
विहितमविहितं वा सर्वमेतत क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ||

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