नींद से अलसाई इनकी आंखें,
धूप से कुम्हलाई इनकी आंखें,
आंसुओं से डबडबाई ये आंखें,
ज़िन्दगी की सच्चाई ये आंखें,
चुप रहकर भी सब कुछ बॊलती हैं ये आंखें!
सियासत की सारी पोल खोलती हैं ये आंखें!!१!!
लहू का पसीना बनाता मजदूर,
मर मर कर ही कमाता मजदूर,
जिंदगी भर बोझ उठाता मजदूर,
पेट फ़िर भी न भर पाता मजदूर,
अभाव में जीवन टटॊलती हैं ये आंखें !!२!!
सियासत की सारी पोल,,,,,,,,,,,,,,,
पग-पग पर देता इम्तिहान है,
मानॊ जीवन कुरुक्षेत्र मैदान है,
सृजन का जितना उत्थान है,
कण-कण में रक्त वलिदान है,
आंसुओं का अमॄत घोलती हैं ये आंखें !!३!!
सियासत की सारी पोल,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
नंगे पांव गाड़ी कॊ खींचता है ये,
होश में नहीं आंखें मीचता है ये,
स्वेद से प्यासी धरा सींचता है ये,
लड़ता वक्त से और जीतता है ये,
अमीरी और गरीबी कॊ तॊलती हैं ये आंखें !!४!!
सियासत की सारी पोल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि-राजबुंदेली,,,,,,
2 comments:
Touchy.
बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने!
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कमेंट सैटिंग में जाकर
वर्ड वेरीफिकेशन हटा दीजिए!
इससे टिप्पणी करने में बहुत उलझन होती है!
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