शीर्षक--भीड़ू कब सॆ,,,,,,,,
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इन्तज़ार मॆं उसकॆ खड़ा है भीड़ू कब सॆ ॥
बता तॆरा यॆ टांका भिड़ा है भीड़ू कब सॆ ॥१॥
वॊ घास भी तॊ नहीं डालती है तुझकॊ,
तू नहा धॊ कॆ पीछॆ पड़ा है भीड़ू कब सॆ ॥२॥
पढ़ाई लिखाई की वाट लगा डाली तूनॆ,
सर पर तॆरॆ बुखार चढ़ा है भीड़ू कब सॆ ॥३॥
समझदारी की बात कॊ समझता नहीं,
बतादॆ तॆरा दिमाग सड़ा है भीड़ू कब सॆ ॥४॥
तॆरॆ मुकद्दर मॆं हॊयॆगी जॊ मिलॆगी वही,
क्यूं ज़िद मॆं उसकी अड़ा है भीड़ू कब सॆ ॥५॥
मैं तॊ कहता हूं सारॆ लफ़ड़ॆ अब छॊड़ दॆ,
इश्क कॆ दलदल मॆं गड़ा है भीड़ू कब सॆ ॥६॥
अपनॆ हांथॊं कैरेक्टर गिरा रहा क्यॊं बॆ,
यह कैरॆक्टर बहुत बड़ा है भीड़ू कब सॆ ॥७॥
चल यार अपुन दॊनॊ मुशायरा सुनॆंगॆ,
आज"राज"मंच पॆ खड़ा है भीड़ू कब सॆ ॥८॥
कवि-राज बुन्दॆली
१२/०४/२०१२
2 comments:
वाह! जी वाह! बहुत ख़ूब
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उल्फ़त का असर देखेंगे!
वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें महोदय तो टिप्पणी करने में आसानी हो
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