Saturday, April 22, 2017

,संवेदना,,,

,,,,,,,,,संवेदना,,,,,,
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कभी कभी सोचता हूँ
मैं भी व्यक्त करूँ संवेदना
सबकी तरह,
लोगों के घरों में जाकर
खाते हुए पकौड़े
और आलू के पराठे
या फिर,,,,
किसी चाय की दूकान पर
बैठे दो चार निहायत
भिड़ाऊखोर मसखरिया मिज़ाज़
निठल्लों के साथ लेते हुए गर्म चाय की चुस्कियाँ,
और खींचते हुए विदेशी सिगार के
लंबे कश,
छोड़ते हुए मुँह से
रेल के इंजन की तरह
छल्लेदार धुँए के गुब्बारे,
या फिर,,
किसी मदिरालय की
बेन्च के सामने बैठकर उड़ेल दूँ
सारी संवेदना,
उफनती शराब के गिलास में,
सुबह सुबह उठकर
बाबा रामदेव के बताये
योग की तरह करता हूँ रिहर्सल संवेदना व्यक्त करनें की,
मगर फिर भी,
नहीं सीख पाया हूँ नेताओं,मंत्रियों,साहूकारों
जमीदारों,धन्नासेठों की तरह
संवेदना व्यक्त करना,
आँखों से आँसू बहाना और भीतर से मुस्कराना,
नहीं हो पाया है
आज तक मुझसे संवेदना व्यक्त करने का अभिनय,
अभी अभी टेलीविजन पर भी
कुछ लोग बहा रहे थे आँसू,
देखकर नष्ट होता हुआ
कालाधन,
व्यक्त कर रहे थे संवेदना
स्वयं के प्रति,
जनता को अगुआ बनाकर,
न जानें,
दोरंगे लोग कैसे निभा लेते हैं कई किरदार एक साथ,
बेचैन हो उठते है
कुछ लोग,
संवेदना व्यक्त करने के लिए, अवसर की तलाश में
लगे रहते हैं, रात दिन,
भूकम्प,बाढ़,सूखा,
और महामारी का इन्तज़ार करते रहते हैं पलकें बिछाये,
कब कोई
सैनिक शहीद हो,
कब कोई
किसान लटके फाँसी के फंदे से,
कब कोई
बलात्कार की शिकार दम तोड़े,
इन्तज़ार करते रहते हैं
इनके कड़क क्रीच वाले सफेद पोशाक,
बेताब रहती हैं एक साथ जलनें को मोमबत्तियाँ,
क्योंकि,,,,
सफेद पोशाक
और
जलती हुई मोमबत्ती के साथ
साफ साफ दिखाई देती है
व्यक्त होती हुई संवेदना
कैमरे के सामनें,
हाँथों में लगभग 500 रूपये
कीमत वाली गुलाब के फूलों की गोलाकार कुंडी
बना देती है अति-विशिष्ट इनकी संवेदना को,
फुटपाथ पर भूख से
बिलबिलाते,भीख माँगते,
चीथड़ों में लिपटे
अनाथ बच्चे
कभी दिखाई नहीं देते इनकी संवेदना को,
महलों की संवेदना कभी नहीं पहुँचती उन झोपड़ों तक
जिनको तोड़कर उनकी छाती पर खड़ी कर दी गईं हैं
गगन चूमती बहुमंज़िली इमारतें,
सोचता हूँ,,,आखिर,
किसके प्रति संवेदना व्यक्त करे
यह कलम,
बहुत कुछ कहना चाहती है
संवेदना में बहना चाहती है
यह कलम,,,
आँधियों से लड़ी है
कभी शबरी तो कभी अहिल्या बनकर खड़ी है
कह रही है
जिस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम
प्रभु श्रीराम के दर्शन पाएगी ।।
यह कलम त्रिकालदर्शी ऋषि वाल्मीकि की कलम बन जायेगी ।।
डॉ राज बुन्देली
(मुम्बई)
09321010105
08080556555

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