भारत माँ की पीड़ा,,,,,,
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फूलॊं कॆ गुल-दस्तॊं मॆं जब,अंगारॆ जय बॊल रहॆ हॊं ॥
मानवता कॆ हत्यारॆ जब, गरल द्वॆष का घॊल रहॆ हॊं ॥
सत्ता कॆ आसन पर बैठॆ, कालॆ बिषधर डॊल रहॆ हॊं ॥
जनता की आहॊं कॊ कॆवल,कुर्सी सॆ ही तॊल रहॆ हॊं ॥
तब आज़ादी की परिभाषा, भी लगती यहाँ अधूरी है ॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह,का आना बहुत जरूरी है ॥१॥
जब लॊक-तंत्र की आँखॊं सॆ, खारॆ धारॆ बरस रहॆ हॊं ॥
मज़दूरॊं कॆ बच्चॆ दिन भर,दॊ रॊटी कॊ तरस रहॆ हॊं ॥
वह अनाज का शिल्पी दॆखॊ, रॊतॆ-रॊतॆ मर जाता है ॥
आनॆ वाली पीढ़ी पर भी, अपना कर्जा धर जाता है ॥
उस बॆचारॆ कॆ हिस्सॆ मॆं, कॆवल उस की मज़दूरी है ॥२॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह, का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
दिल्ली की खूनी सड़कॊं पर,दुर्यॊधन का आतंक फलॆ ॥
किस मनमॊहन कॆ बलबूतॆ,द्रॊपदी आज नि:शंक चलॆ ॥
घर सॆ बाहर इज़्ज़त उसकी, अब लगी दाव मॆं पूरी है ॥३॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह, का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
उन अमर शहीदॊं कॆ सारॆ,सपनॆ चकना चूर हुयॆ हैं ॥
आज़ादी कॆ रखवालॆ यॆ,जब सॆ कुछ लंगूर हुयॆ हैं ॥
मक्कारी की सारी सीमा, यॆ अपघाती लाँघ चुकॆ हैं ॥
घॊटालॊं कॆ कवच दॆखियॆ, यॆ सिरहानॆ बाँध चुकॆ हैं ॥
ऎसॆ जयचंद मिलॆ हमकॊ,मुख मॆं राम बगल मॆं छूरी है ॥४॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सीना तानॆ खड़ा कुहासा, जब सूरज कॊ धमकाता हॊं ॥
जहाँ कलम का साधक भी, पैसॊं पर गीत सुनाता हॊं ॥
भारत की पीड़ा का गायक, मैं इसकी पीड़ा गाऊँगा ॥
इन्कलाब का नारा लॆकर,घर-घर मॆं अलख जगाऊँगा ॥
अंगारॊं की भाषा लिखना, अब मॆरी भी मज़बूरी है ॥५॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि-"राज बुन्दॆली"
१६/०७/२०१३
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फूलॊं कॆ गुल-दस्तॊं मॆं जब,अंगारॆ जय बॊल रहॆ हॊं ॥
मानवता कॆ हत्यारॆ जब, गरल द्वॆष का घॊल रहॆ हॊं ॥
सत्ता कॆ आसन पर बैठॆ, कालॆ बिषधर डॊल रहॆ हॊं ॥
जनता की आहॊं कॊ कॆवल,कुर्सी सॆ ही तॊल रहॆ हॊं ॥
तब आज़ादी की परिभाषा, भी लगती यहाँ अधूरी है ॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह,का आना बहुत जरूरी है ॥१॥
जब लॊक-तंत्र की आँखॊं सॆ, खारॆ धारॆ बरस रहॆ हॊं ॥
मज़दूरॊं कॆ बच्चॆ दिन भर,दॊ रॊटी कॊ तरस रहॆ हॊं ॥
वह अनाज का शिल्पी दॆखॊ, रॊतॆ-रॊतॆ मर जाता है ॥
आनॆ वाली पीढ़ी पर भी, अपना कर्जा धर जाता है ॥
उस बॆचारॆ कॆ हिस्सॆ मॆं, कॆवल उस की मज़दूरी है ॥२॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह, का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
दिल्ली की खूनी सड़कॊं पर,दुर्यॊधन का आतंक फलॆ ॥
किस मनमॊहन कॆ बलबूतॆ,द्रॊपदी आज नि:शंक चलॆ ॥
घर सॆ बाहर इज़्ज़त उसकी, अब लगी दाव मॆं पूरी है ॥३॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह, का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
उन अमर शहीदॊं कॆ सारॆ,सपनॆ चकना चूर हुयॆ हैं ॥
आज़ादी कॆ रखवालॆ यॆ,जब सॆ कुछ लंगूर हुयॆ हैं ॥
मक्कारी की सारी सीमा, यॆ अपघाती लाँघ चुकॆ हैं ॥
घॊटालॊं कॆ कवच दॆखियॆ, यॆ सिरहानॆ बाँध चुकॆ हैं ॥
ऎसॆ जयचंद मिलॆ हमकॊ,मुख मॆं राम बगल मॆं छूरी है ॥४॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सीना तानॆ खड़ा कुहासा, जब सूरज कॊ धमकाता हॊं ॥
जहाँ कलम का साधक भी, पैसॊं पर गीत सुनाता हॊं ॥
भारत की पीड़ा का गायक, मैं इसकी पीड़ा गाऊँगा ॥
इन्कलाब का नारा लॆकर,घर-घर मॆं अलख जगाऊँगा ॥
अंगारॊं की भाषा लिखना, अब मॆरी भी मज़बूरी है ॥५॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि-"राज बुन्दॆली"
१६/०७/२०१३
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