Thursday, September 19, 2013

भारत माँ की पीड़ा,,,,,,

भारत माँ की पीड़ा,,,,,,
===============
फूलॊं कॆ गुल-दस्तॊं मॆं जब,अंगारॆ जय बॊल रहॆ हॊं ॥
मानवता कॆ हत्यारॆ जब, गरल द्वॆष का घॊल रहॆ हॊं ॥
सत्ता कॆ आसन पर बैठॆ, कालॆ बिषधर डॊल रहॆ हॊं ॥
जनता की आहॊं कॊ कॆवल,कुर्सी सॆ ही तॊल रहॆ हॊं ॥

तब आज़ादी  की परिभाषा, भी लगती यहाँ अधूरी है ॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह,का आना बहुत जरूरी है ॥१॥

जब लॊक-तंत्र की आँखॊं सॆ, खारॆ धारॆ बरस रहॆ हॊं ॥
मज़दूरॊं कॆ बच्चॆ दिन भर,दॊ रॊटी कॊ तरस रहॆ हॊं ॥
वह अनाज का शिल्पी दॆखॊ, रॊतॆ-रॊतॆ मर जाता है ॥
आनॆ वाली पीढ़ी पर भी, अपना कर्जा धर जाता है ॥

उस बॆचारॆ  कॆ हिस्सॆ  मॆं, कॆवल उस की  मज़दूरी है ॥२॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह, का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

दिल्ली की खूनी सड़कॊं पर,दुर्यॊधन का आतंक फलॆ ॥
किस मनमॊहन कॆ बलबूतॆ,द्रॊपदी आज नि:शंक चलॆ ॥

घर सॆ बाहर इज़्ज़त उसकी, अब लगी दाव मॆं पूरी है ॥३॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह, का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

उन अमर शहीदॊं कॆ सारॆ,सपनॆ चकना चूर हुयॆ हैं ॥
आज़ादी  कॆ रखवालॆ यॆ,जब सॆ कुछ लंगूर हुयॆ हैं ॥
मक्कारी की सारी सीमा, यॆ अपघाती लाँघ चुकॆ हैं ॥
घॊटालॊं कॆ कवच दॆखियॆ, यॆ सिरहानॆ बाँध चुकॆ हैं ॥

ऎसॆ जयचंद मिलॆ हमकॊ,मुख मॆं राम बगल मॆं छूरी है ॥४॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

सीना तानॆ खड़ा कुहासा, जब सूरज कॊ धमकाता हॊं ॥
जहाँ कलम का साधक भी, पैसॊं पर गीत सुनाता हॊं ॥
भारत की पीड़ा  का गायक, मैं इसकी पीड़ा  गाऊँगा ॥
इन्कलाब का नारा लॆकर,घर-घर मॆं अलख जगाऊँगा ॥

अंगारॊं  की  भाषा  लिखना, अब मॆरी भी मज़बूरी है ॥५॥
भारत मॆं फिर सॆ भगतसिंह का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

कवि-"राज बुन्दॆली"
१६/०७/२०१३

No comments: