सेंट्रल जेल , लाहौर ३ मार्च १९३१
...अजीज कुलतार ,
आज तुम्हारी आँखों में आसूं देख कर बहुत दुःख हुआ आज तुम्हारी बातों में बहुत दर्द था तुम्हारे आसूं मुझसे सेहन नहीं होते
बरखुदार ,हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का ख्याल रखना | हौसला रखना और क्या कहूँ !
उसे यह फ़िक्र है हर्दुम नए तर्ज़े -जफा क्या है
हमे यह शौक हैं देखें सितम की इन्तहा क्या है
...
दहर से क्यों खफा रहें चर्ख का क्यों गिला करें
सारा जहन अदू सही ,आओ मुकाबला करें
कोई दम का मेहमान हूँ ,ऐ अहेले महफ़िल
चरागे -सहर हूँ बुझा चाहता हूँ
हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली
ये मुश्ते ख़ाक है फानी रहे न रहे
अच्छा रुखसत | खुश रहो अहले -वतन हम तो सफ़र करते हैं | हिम्मत से रहना |
नमस्ते |
तुम्हारा भाई भगतसिंह
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