इशारे इशारे में वो,,,,,,,
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जब जी में आता है,मुलाकात कर लेता है !
इशारे-इशारे में वो,सारी बात कर लेता है !!
फ़ैलता है जब वो, समंदर से भी ज्यादा,
सिमटता है तो कतरे मे ज़ात कर लेता है !!
तमाम खेल है बस, उसके एक इशारे के,
रात को दिन औ,दिन को रात कर लेता है !!
उसके अपने अंदाज़ सब निराले है बहुत,
जैसी चाहता है वैसी,करामात कर लेता है !!
समूची सृष्टि चलती है उसी के इशारे पर,
चाहे तो धूप चाहे तो बरसात कर लेता है !!
जब नहीं देता तो कुछ नहीं देता है "राज़",
जिसको देता है तो हज़ार हाथ कर लेता है !!
"कवि-राजबुँदेली"
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
शानदार ग़ज़ल आदरणीय राज जी...
सादर बधाई....
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