Sunday, January 8, 2012

चिराग ही घर जलाने लगे हैं,,,

लक्ष्य पर सब के निशाने लगे हैं ॥
असलियत अपनी दिखाने लगे हैं ॥१॥

उन कलियों ने मुस्कुरा क्या दिया,
मनचले भंवरे तो मंडराने लगे हैं ॥२॥

यकीनन इस शहर में चुनाव होगा,
यहां नेता कई पैदल आने लगॆ हैं ॥३॥

बंटने वालॆ हैं फ़िर वायदों के पुलाव,
अपने अपने परचम फ़हराने लगे हैं ॥४॥

श्रेष्ठता की दौड़ मॆं सब अंधे हो गये,
जुगनू भी सूरज को धमकाने लगे हैं ॥५॥

तूफ़ां कॊ निगल जायेंगे सोच कर,
देखो तिनके भी सर उठाने लगे हैं ॥६॥

उनसे अदब की उम्मीद मत रखना,
जो कान्वेंन्ट स्कूलो में जाने लगे है ॥७॥

अब क्या ज़माना आ गया है "राज़",
घर के चिराग ही घर जलाने लगे हैं ॥८॥

कवि-राजबुन्देली

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