कवित्त,,,,
फ़ागुन के महीने में नशा ऎसा हुआ,
जड़ पॆड़ आम के भी बौराने लगे हैं ॥
बही मादकता महुआ की डाल-डाल ,
पलाश तरु वसंत-गीत गाने लगे हैं ॥
सरिता के तीर निरखत मयंक-मुख,
चकवा-चकवी दोऊ इतराने लगे हैं ॥
कहॆ कवि "राज" रितुराज आया जब,
बूढ़ों के दिमाग भी फ़ड़फ़ड़ाने लगे हैं ॥
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