Monday, February 13, 2012

कब तक चलेगा,,,,,,,

कब तक चलेगा,,,,,,,
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उधार, उधार पे उधार, कब तक चलेगा ।
किसान हुआ कर्जदार, कब तक चलेगा ॥१॥


बच्चे पढ़ लिखकर बेरोजगार फ़िर रहे,
आरक्षण का हथियार, कब तक चलेगा ॥२॥


खानॆ को चार पेट कमाने को दो हांथ,
यूँ हमारा घर-परिवार, कब तक चलेगा ॥३॥


दबंग हैं जब तक ज़िंदगी से लड रहे हैं,
ये खेल आखिरकार, कब तक चलेगा ॥४॥


वह गालियों से शुरुआत करता है बात,
आरक्षण  का थानेदार,कब तक चलेगा ॥५॥

4 comments:

dinesh aggarwal said...

सार्थक एवं सटीक प्रस्तुति....सराहनीय....
कृपया इसे भी पढ़े-
नेता- कुत्ता और वेश्या(भाग-2)

Sunita Sharma said...

kya bat hai...lekhani ki dhar se karara vyang vyswastha pr ...badhai ho...

kavirajbundeli.blogspot.com said...

धन्यवाद,,,,,,,,मित्रो आभारी हूं आपका,,,,,,,,,,

kavirajbundeli.blogspot.com said...

बहुत-बहुत आभारी हूं,,,,,,,,,