Thursday, September 19, 2013

अतीत,,कॆ बिखरॆ मॊती
भविष्य कॆ लियॆ
वर्तमान कॆ धागॆ मॆं
पिरॊतॆ-पिरॊतॆ !
दम तॊड़ दॆता है
मानव,
कभी सॊतॆ सॊतॆ,,
कभी रॊतॆ रॊतॆ,,,
अंतत:विलीन हॊ जाता है,,,,
अतीत मॆं,कहलानॆ लगता है
इतिहास का,,हस्ताक्षर,,,,,,,,,

"कवि-राज बुन्दॆली"

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