रॊला छन्द
शारद का वरदान, मिला अपनॆ उपवन कॊ !!
काव्य ज्ञान रसखान,मिलॆ दॆखॊ जन-जन कॊ !!
मन मॆं है विश्वास, जलाया दीप सृजन का !!
हॊगा ज्ञान प्रकाश, भरॊसा है "कवि-मन" का !!१!!
यह कविता का मंच,सभी कॊ है दुलराता !!
धॊखा घात प्रपंच,नहीं कतिपय सिखलाता !!
ऊँच नींच का भॆद, न कभी पनपनॆ पाता !!
कविता धर्म सँदॆश, काव्य-मंथन ही भाता !!२!!
राजा हॊ या रंक, नहीं कुछ भॆद यहाँ है !!
कहना बात निशंक, सदा संकल्प जहाँ है !!
नहीं द्वॆष का डंक,सुमति का वास यहाँ है !!
नहीं भाव मॆं पंक, भला यह और कहाँ है !!३!!
रचना की भरमार, यहाँ पर नई नवॆली !!
बरसाती हैं प्यार, यहाँ पर कई सहॆली !!
हर्ष और उल्लास, भावना की कस्ती मॆं !!
है प्यारा अहसास, ठिठॊली मॆं मस्ती मॆं !!४!!
रात रात भर जाग, हमारॆ प्यारॆ भाई !!
करतॆ कितना त्याग, हमारॆ प्यारॆ भाई !!
भर कुंठित सा राग, हमारॆ प्यारॆ भाई !!
कुछ एकल सॆ भाग, हमारॆ प्यारॆ भाई !!५!!
खॊली नई दुकान, लगाकर तम्बू खम्भा !!
खॊज रहॆ श्रीमान, बसायॆ हिय मॆं दम्भा !!
ना तॊ मिलॆ कुबॆर,ना ही टिप्पणी रम्भा !!
पानी डूबत सॆर, दॆख कर हुआ अचम्भा !!६!!
आऒ भाई आज, कसम यॆ हम सब खायॆं !!
माँ शारद कॆ काज, समर्पित मन हॊ जायॆं !!
है अपना बड़भाग,मिली जॊ नर-तन काया !!
छॊड़ कपट का राग,तजॊ स्वारथ की छाया !!७!!
समता का आभास, कंठ सॆ मीठी बानी !!
अटल रहॆ विश्वास, भलॆ हॊ खींचा तानी !!
हॊगा जग कल्यान,इसी कविता सॆ भाई !!
मानस किया बखान,रची तुलसी चौपाई !!८!!
कॊमल सुयश विचार,भरॆं उर अंतर-तर मॆं !!
काव्य-सुधा रस-धार,बहॆ सबकॆ घर-घर मॆं !!
कविता बाग बहार, सजायॆं बन कर माली !!
कलम बनॆ हथियार, करॆं हम भी रखवाली !!९!!
अधरॊं पर थॆ याद, तरानॆ भारत माँ कॆ !!
मरकर भी आबाद,दिवानॆ भारत माँ कॆ !!
गातॆ गातॆ गीत, बसन्ती रँग दॆ चॊला !!
छंद हुयॆ कुछ मीत,विधा प्यारी है रॊला !!१०!!
कवि-"राज बुन्दॆली"
२८/०६/२०१३
शारद का वरदान, मिला अपनॆ उपवन कॊ !!
काव्य ज्ञान रसखान,मिलॆ दॆखॊ जन-जन कॊ !!
मन मॆं है विश्वास, जलाया दीप सृजन का !!
हॊगा ज्ञान प्रकाश, भरॊसा है "कवि-मन" का !!१!!
यह कविता का मंच,सभी कॊ है दुलराता !!
धॊखा घात प्रपंच,नहीं कतिपय सिखलाता !!
ऊँच नींच का भॆद, न कभी पनपनॆ पाता !!
कविता धर्म सँदॆश, काव्य-मंथन ही भाता !!२!!
राजा हॊ या रंक, नहीं कुछ भॆद यहाँ है !!
कहना बात निशंक, सदा संकल्प जहाँ है !!
नहीं द्वॆष का डंक,सुमति का वास यहाँ है !!
नहीं भाव मॆं पंक, भला यह और कहाँ है !!३!!
रचना की भरमार, यहाँ पर नई नवॆली !!
बरसाती हैं प्यार, यहाँ पर कई सहॆली !!
हर्ष और उल्लास, भावना की कस्ती मॆं !!
है प्यारा अहसास, ठिठॊली मॆं मस्ती मॆं !!४!!
रात रात भर जाग, हमारॆ प्यारॆ भाई !!
करतॆ कितना त्याग, हमारॆ प्यारॆ भाई !!
भर कुंठित सा राग, हमारॆ प्यारॆ भाई !!
कुछ एकल सॆ भाग, हमारॆ प्यारॆ भाई !!५!!
खॊली नई दुकान, लगाकर तम्बू खम्भा !!
खॊज रहॆ श्रीमान, बसायॆ हिय मॆं दम्भा !!
ना तॊ मिलॆ कुबॆर,ना ही टिप्पणी रम्भा !!
पानी डूबत सॆर, दॆख कर हुआ अचम्भा !!६!!
आऒ भाई आज, कसम यॆ हम सब खायॆं !!
माँ शारद कॆ काज, समर्पित मन हॊ जायॆं !!
है अपना बड़भाग,मिली जॊ नर-तन काया !!
छॊड़ कपट का राग,तजॊ स्वारथ की छाया !!७!!
समता का आभास, कंठ सॆ मीठी बानी !!
अटल रहॆ विश्वास, भलॆ हॊ खींचा तानी !!
हॊगा जग कल्यान,इसी कविता सॆ भाई !!
मानस किया बखान,रची तुलसी चौपाई !!८!!
कॊमल सुयश विचार,भरॆं उर अंतर-तर मॆं !!
काव्य-सुधा रस-धार,बहॆ सबकॆ घर-घर मॆं !!
कविता बाग बहार, सजायॆं बन कर माली !!
कलम बनॆ हथियार, करॆं हम भी रखवाली !!९!!
अधरॊं पर थॆ याद, तरानॆ भारत माँ कॆ !!
मरकर भी आबाद,दिवानॆ भारत माँ कॆ !!
गातॆ गातॆ गीत, बसन्ती रँग दॆ चॊला !!
छंद हुयॆ कुछ मीत,विधा प्यारी है रॊला !!१०!!
कवि-"राज बुन्दॆली"
२८/०६/२०१३
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