वही रातॆं वही आहॆं, वही ख़त संग आँसू भी ॥
सतातॆ हैं हमॆं मिलकॆ, मुहब्बत संग आँसू भी ॥१॥
कभी हँसना कभी रॊना,कभी खॊना कभी पाना,
सदा मुँह मॊड़ लॆतॆ हैं, तिज़ारत संग आँसू भी ॥२॥
हमारॆ नाम का चरचा, जहाँ दॆखॊ वहाँ हाज़िर,
हमॆं दॆतॆ बड़ी तक़लीफ़ॆं,शिकायत संग आँसू भी ॥३॥
सदा इल्ज़ाम दॆता है, ज़माना बॆ-वफ़ा कह कॆ,
नहीं अब साथ दॆतॆ यॆ, इबादत संग आँसू भी ॥४॥
नहीं हॊती ख़ुदा तॆरी, दुआ औ बन्दगी मुझसॆ,
भला कैसॆ सँभालूं मैं, तिलावत संग आँसू भी ॥५॥
कभी तॊड़ा कभी जॊड़ा,गमॆ-दिल का यही रॊना,
हक़ीमॊं की बदौलत हैं, तिबाबत संग आँसू भी ॥६॥
इरादॆ ज़िन्दगी कॆ हम, नहीं समझॆ नहीं जानॆ,
पड़ॆ भारी सराफ़त पर, बगावत संग आँसू भी ॥७॥
निभा लॊ दुश्मनी अपनी,अभी साँसॆं बकाया हैं,
हमॆं अब रास आयॆ हैं, अदावत संग आँसू भी ॥८॥
यही हमराह हैं अब तॊ, इबादत जुस्तजू तॆरी,
मुझॆ मंजूर हैं बॆ-शक, इनायत संग आँसू भी ॥९॥
वही चाहत वही उल्फ़त,वही बरसात का मौसम,
वही उम्मीद तन्हाई, ज़ियारत संग आँसू भी ॥१०॥
वही आदत वही हालत, फ़टा कुरता बढ़ी दाढ़ी,
घटी सॆहत लुटी चाहत, शराफ़त संग आँसू भी ॥११॥
लुटॆ सपनॆं मिटॆ अरमां, अमीरी नॆ दियॆ कॊड़ॆ,
रुलातॆ खूब हैं हम कॊ, हरारत संग आँसू भी ॥१२॥
हमारॆ पास मॆं क्या है,न दौलत है न ताक़त है,
ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ दॆखॊ,सियासत संग आँसू भी ॥१३॥
वही मतला वही मक्ता, वही बह्र-ए- रवानी है,
वही अरक़ान मॆं दॆखॊ, हिफ़ाज़त संग आँसू भी ॥१४॥
सदाकत सॆ निभाता है,सदा किरदार अपना वॊ,
झरॆ हैं "राज"कॆ कितनॆं,क़यामत संग आँसू भी ॥१५॥
कवि-"राज बुन्दॆली"
०५/०८/२०१३
सतातॆ हैं हमॆं मिलकॆ, मुहब्बत संग आँसू भी ॥१॥
कभी हँसना कभी रॊना,कभी खॊना कभी पाना,
सदा मुँह मॊड़ लॆतॆ हैं, तिज़ारत संग आँसू भी ॥२॥
हमारॆ नाम का चरचा, जहाँ दॆखॊ वहाँ हाज़िर,
हमॆं दॆतॆ बड़ी तक़लीफ़ॆं,शिकायत संग आँसू भी ॥३॥
सदा इल्ज़ाम दॆता है, ज़माना बॆ-वफ़ा कह कॆ,
नहीं अब साथ दॆतॆ यॆ, इबादत संग आँसू भी ॥४॥
नहीं हॊती ख़ुदा तॆरी, दुआ औ बन्दगी मुझसॆ,
भला कैसॆ सँभालूं मैं, तिलावत संग आँसू भी ॥५॥
कभी तॊड़ा कभी जॊड़ा,गमॆ-दिल का यही रॊना,
हक़ीमॊं की बदौलत हैं, तिबाबत संग आँसू भी ॥६॥
इरादॆ ज़िन्दगी कॆ हम, नहीं समझॆ नहीं जानॆ,
पड़ॆ भारी सराफ़त पर, बगावत संग आँसू भी ॥७॥
निभा लॊ दुश्मनी अपनी,अभी साँसॆं बकाया हैं,
हमॆं अब रास आयॆ हैं, अदावत संग आँसू भी ॥८॥
यही हमराह हैं अब तॊ, इबादत जुस्तजू तॆरी,
मुझॆ मंजूर हैं बॆ-शक, इनायत संग आँसू भी ॥९॥
वही चाहत वही उल्फ़त,वही बरसात का मौसम,
वही उम्मीद तन्हाई, ज़ियारत संग आँसू भी ॥१०॥
वही आदत वही हालत, फ़टा कुरता बढ़ी दाढ़ी,
घटी सॆहत लुटी चाहत, शराफ़त संग आँसू भी ॥११॥
लुटॆ सपनॆं मिटॆ अरमां, अमीरी नॆ दियॆ कॊड़ॆ,
रुलातॆ खूब हैं हम कॊ, हरारत संग आँसू भी ॥१२॥
हमारॆ पास मॆं क्या है,न दौलत है न ताक़त है,
ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ दॆखॊ,सियासत संग आँसू भी ॥१३॥
वही मतला वही मक्ता, वही बह्र-ए- रवानी है,
वही अरक़ान मॆं दॆखॊ, हिफ़ाज़त संग आँसू भी ॥१४॥
सदाकत सॆ निभाता है,सदा किरदार अपना वॊ,
झरॆ हैं "राज"कॆ कितनॆं,क़यामत संग आँसू भी ॥१५॥
कवि-"राज बुन्दॆली"
०५/०८/२०१३
No comments:
Post a Comment