१८. सुदामा की झॊपड़ी........
____________________________________
शहर कॆ बीचॊं-बीच
मुख्य सड़क कॆ किनारॆ,
दरिद्रता कॆ परिधान मॆं लिपटी,
निहारती है दिन-रात ,
गगन चूमती इमारतॊं कॊ,
वह सुदामा की झॊपड़ी,
कह रही है..
कब आयॆगा समय...
कृष्ण और सुदामा कॆ मिलन का,
अब तॊ जाना ही चाहियॆ..
सुदामा कॊ,
आवॆदन पत्र कॆ साथ,
उस सत्ताधीश कॆ दरबार मॆं,
कहना चाहि्यॆ,
अब कॊई भी झॊपड़ी
महफ़ूज़,नहीं है.....
तॆरॆ शासनकाल मॆं,
हजारॊं आग की चिन्गारियां,
बढ़ती आ रही हैं
मॆरी तरफ़..
गिद्ध जैसी नजरॆं गड़ायॆ हुयॆ
यॆ
तॆरॆ शहर कॆ बुल्डॊजर,
कल..........
मॆरी गरीबी कॆ सीनॆ पर
तॆरा,
सियासती बुल्डॊजर चल जायॆगा !!
और................
सुदामा की झोपड़ी की जगह,
कॊई डान्स-बार खुल जायॆगा !!
"कवि-राजबुंदॆली"
No comments:
Post a Comment