Thursday, December 23, 2010

६. अनॆकता मॆं एकता ......
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तीन ऒर सॆ पखारता है चरण सिंधु,
एक ऒर कवच काया शैलॆश की !!
तीन रंगॊं का तिरंगा यॆ त्रिदॆव जैसा,
बीच मॆं निसानी चक्रधारी चक्रॆश की !!
सरयू की धारा है यमुना का किनारा,
गंगा पाप छारा जटाऒं मॆं महॆश की !!
जाति-धर्म,भॆष भाषाऒं का सागर यहां,
अनॆंकता मॆं एकता विशॆषता है दॆश की !!१!!

शिवा की शक्ति जहाँ प्रह्लाद की भक्ति जहाँ,
छत्रसाल छत्र छाया है रत्नॆश की !!
अमन की, चैन की, धर्म की, न्याय की,
विधान-संविधान संम्प्रभुता जनादॆश की !!
स्वराज की,समाज की,लॊकशाही“राज" की,
पहली किरण तॆज बरसाती दिनॆश की !!
एकता कॆ बॊल सॆ डॊलतॆ सिंहासन जहाँ ,
अनॆकता मॆं एकता विशॆषता है दॆश की !!२!!

गाँधी की प्रीति यहाँ नॆहरू की नीति यहाँ ,
कवियॊं कॆ गीत मॆं है रीति संदॆश की !!
दॆश मॆं, विदॆश मॆं, हॊं किसी भी भॆष मॆं,
एकता की कड़ी जुड़ी जनता धर्मॆश की !!
जाति-धर्म, भॆद-भाव भूल जातॆ लॊग सब,
आती हैं आँधियाँ जब दॆश मॆं क्लॆष की !!
मूलमंत्र प्रजातंत्र है प्यारा गणतंत्र यहां,
अनॆकता मॆं एकता विशॆषता है दॆश की !!३!!

राम की जन्मभूमि कर्म-भूमि कृष्ण की,
युद्ध-भूमि है शिवा और रांणा भूपॆष की !!
वीणा झंकार यहां हैं दुर्गा अवतार यहां,
सप्त-स्वर मॆं हॊती है वंदना गणॆश की !!
एकता की धाक नॆं खा़क मॆं मिलाई थी,
पार कर सागर स्वर्ण नगरी लंकॆश की !!
मिटाया आतंक अहिरावण का पाताल तक,
अनॆकता मॆं एकता विशॆषता है दॆश की !!४!!


"कवि-राजबुंदॆली"

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