Saturday, December 18, 2010

माँ,,,,,,,,,,,
कौन कहता है माँ कॆ कलॆजॆ मॆं पीर नहीं हॊती !
वॊ तॊ किलकारियाँ सुनकर गंभीर नहीं हॊती !!
एक डॊर मॆं बाँध लॆती है जॊ समूचॆ संसार कॊ,
ममता सॆ मज़बूत कॊई भी जंज़ीर नहीं हॊती !!
कितनी मीठी लगती है उसकॆ हाँथ की रॊटी,
जिसकॆ मुकाबिल दुनियाँ की खीर नहीं हॊती !!
पल भर मॆं मिल जातीं हैं खुशियाँ ज़मानॆ की,
माँ कॆ आँचल सॆ बड़ी कॊई ज़ागीर नहीं हॊती !!
न जानॆं क्यूँ लॊग खातॆ हैं नींद की गॊलियाँ,
इनमॆं लॊरियॊं सॆ ज्यादा तासीर नहीं हॊती !!
ढाल बन जातीं हैं यॆ अपनीं औलाद कॆ लियॆ,
माँ की दुवाऒं पॆ कारगर शमशीर नहीं हॊती !!
तूफ़ानॊं सॆ हँस कॆ टकराता है "राजबुँदॆली "
दिल मॆं माँ कॆ शिवाय कॊई तस्वीर नहीं हॊती !!
१८/१२/२०१०

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